________________ 200 जीतकल्प सभाष्य 1947. जो दव्वखेत्तकतकालभावओ जं जहा जिणक्खातं / . तं तह असद्दहंतं, 'अप्परिणामं वियाणाहि // 1948. जो दव्वखेत्तकतकालभावओ जं. जहा जिणक्खातं। तल्लेसुस्सुत्तमती, अतिपरिणामं वियाणाहि // 1949. परिणमति जहत्थेणं, मती तु परिणामगस्स कज्जेसु। बितिए ण तु परिणमती, अहिगमती परिणमे ततिए' // 1950. दोसु तु परिणमति मती, उस्सग्गऽववायतो तु पढमस्स। बितियस्स तु उस्सग्गे, अतिअववाए तु ततियस्स॥ 1951. अंबादीदिटुंतेहिँ, परिक्खा तेसि होति कातव्वा। . . जह कोई गुरुहिं तू, भणितो अंबाणि आणेहि // 1952. परिणामगोऽत्थ भणती, किं 'सच्चित्ते अचित्ते वाणेमि?" / भावियः केवइए वा?, किं टाले? भिण्णऽभिण्णे वा?॥ 1953. बेति गुरू लद्ध च्चिय, पुणो व वोच्छिसु अहव वीमंसा। भणितो सि त्ती एवं, अप्परिणामो इमं बेति॥ 1954. किं ते पित्तपलावो?, मा बितियं एरिसाइँ:०. जंपाहि। मा परो' वि सोच्छिति 2, अहं३ पि णेच्छामि एयस्स॥ 1955. अतिपरिणामो भणती", कालों सिं अतिच्छए अहो ताव। किं एच्चिरस्स वुत्तं?, इत्थऽम्ह वि ण तरिमो भणितुं५॥ 1956. घेत्तूण भारमागतों, भणती अण्णे वि किं नु आणेमि?। तो दो वि गुरू भणती, उवालभंतो इमं तहियं // 1957. णाभिप्पायं गिण्हसि, असमत्ते चेव भाससी६ वयणे। सुक्कंबिललोणकए, भिण्णे अहवा वि दोच्चंगे८॥ १.जाण अपरिणामयं साहुं (बृ 794 ) / 10. एरिस्सई (पा, ला)। 2. x (पा)। 11. पुरो (ब)। 3. जहिं (बृ 795) / . 12. सोच्छिहि (बृ 799) / 4. परिणामति (पा, ब)। 13. कहं (पा, बृ)। 5. तितिए (ला), तइओ (बृ 796) / 14. भणति (मु, ब)। 6. वि (बृ 797) / 15. तु. बृ 800 / 7. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 54 / 16. भाससि (मु, पा)। 8. "ते चित्ते व आणेमि (मु)। 17. सुत्तंबि' (ब, ला)। 9. भावतो (मु, ब)। 18. बृ८०१।