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________________ पाठ-संपादन-जी-६८,६९ 199 1936. भावं पडुच्च अहिगं, देज्जाही हट्ठ-बलिय-णिरुयस्स। गिलाणस्स तु ऊणतरं, ण व देज्ज सहेज्ज वा कालं // 1937. असुभ सुभो वा भावो', लेस्साभेदेण होति णातव्वो। तिव्वो 'तिव्वतरो वा, तिव्वतमो एव मंदो वि॥ 1938. पणगे वि सेवितम्मी, चरिमं भाओ उ केइ पावंति। चरिमाओ वा पणगं, एवमिणं भावणिप्फण्णं // 1939. पुरिसं पडुच्च अहिगं, ऊणं वा देज्ज अहव तम्मत्तं / ते पुण पुरिसादीया, इमे समासेण णातव्या॥ - पुरिसा गीतागीता, सहासहा तह सढासढा केई। परिणामाऽपरिणामा, अतिपरिणामा य वत्थूणं॥६९॥ 1940. केई पुरिसा गीता, केइ अगीतत्थ होंति णातव्या। धिति-संघयणादीहिं, केइ सहा केइ तू असहा // 1941. मायावी होंति सढा, असढा पुण उज्जपण्ण णेतव्वा। परिणामादी इणमो, समासतो हं पवक्खामि // 1942. परिणामा ऽपरिणामा, अतिपरिणामा य वत्थु चरिमदुगे। अंबादीदिटुंता, होति विभागो इमो तेसिं // 1943. जो दव्वखेत्तकतकालभावओ जं जहा जिणक्खातं। तं तह सद्दहमाणं, जाणसु परिणामगं साधु // 1944. जाणति दव्व जहट्ठिय, सच्चित्ताचित्त मीसगं चेव। कप्पाकप्पं . च तहा, जोगं वा जस्स जं होति // 1945. खेत्ते. जं कायव्वं, अद्धाणे जतण एव सद्दहति। काले सुभिक्ख-दुब्भिक्खमादिसू जो जहा कप्पो॥ 1946. भावे हटुगिलाणं, आगाढे जं जहा' व कातव्वं / .. तं सद्दहति करेति य, एसो परिणामगो साधू // . 1.x (पा, ला)। 5.0 (792) में यह गाथा पाठभेद के साथ मिलती है। 2.x (ला)। ६.बृ७९३। 3. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में भावेत्ति गतं' का उल्लेख है। 7. खेत्तं (ब)। 34. अप' (ब, मु)। 8.x (पा,ला)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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