________________ पाठ-संपादन-जी-५८-६१ 185 1782. गेलण्णम्मि तु दीहे, आहाकम्मादि सण्णिहीमादी। बहुअतियारणिसेवी, सोधी एत्थं तु अवसाणे // 1783. एतम्मि जहुद्दिवे, वोरमणादी गिलाणपज्जते। पत्तेयं पत्तेयं, सोधी तू पंचकल्लाणं // सव्वोवहिकप्पम्मि य, पुरिमत्तापेहणे य चरिमाए। चाउम्मासे वरिसे, य सोधणं पंचकल्लाणं॥५८॥ 1784. पाउसकाले सव्वोवहिम्मि जतणा वि कप्पिए सोधी। पुरिमत्ताएँ पमादा, चरिमाएँ अपेहिते चेव॥ 1785. उवधी धोतऽवसाणे, पुरिमत्तापेहणाएँ चरिमाए। पत्तेयं पत्तेयं', सोहेत्थं पंचकल्लाणं // 1786. चाउम्मासिग वरिसे, णिरतीयारे यऽवस्स दातव्वं / .. आलोइयम्मि सोधी, णियमेणं पंचकल्लाणं॥ 1787. किं कारणमिह सोधी, णिरतीयारे वि दिज्जते एवं?। चोदग! 'सुहुमऽतियारे', कते वि ण वि जाणति कयाई // 1788. अहव ण संभरती तू, जह ‘पादोसीय अड्डरत्तीए / वेरत्तिय पाभातिय, अग्गहणा काल अतियारं / / . 1789. सुत्तत्थपोरिसीअकरणम्मि दुप्पेह दुप्पमज्जासु। एतेण कारणेणं, सोधी तू पंचकल्लाणं // छेदादिमसद्दहओ, मिउणो परियायगव्वितस्स वि य। छेदादीए वि तवो, जीतेण गणाहिवतिणो य॥ 59 // 1790. विपुलं तवमकरेंतो, किह सुज्झति छेदमूलमत्तेणं? / गुरुआणामेत्तेणं, असद्दहंते तवो देयो॥ 1791. मउओ वि छेद मूले, व दिज्जमाणम्मि होति परितुट्ठो। .. इहरा वि वंदणिज्जो, तिक्खुत्तो तस्स देह तवं // 1.4 (ला)। 2. अति (ता, पा, ब, ला)। 3. कयावि (पा, ब, ला)। 4. त्तीय (ब)। 5. 'त्तीय (ता, ब)। 6. छेदातीए (पा, ब, ला)।