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________________ 184 जीतकल्प सभाष्य 1773. गो-महिस-अया-एलग-मिगचम्मं पंचगं मुणेतव्वं / अहवा वि चम्मपणगं, एतं बितियं तु विण्णेयं / 1774. तलिगा खल्लग वझे, कोसग कत्ती य पंचगं' पणगं। एते पंच उ पणगा, सयं च भेदा समक्खाता // ठवणमणापुच्छाए, णिव्विसणे विरियगृहणाए य। जीतेणेक्कासणगं, सेसगमायासु खमणं तु॥५६॥ 1775. ठवणकुल-दाणसड्ढादियाइ ताई तु गुरुमणापुच्छा। पविसति णिव्विसणा तू, पडिगाहे" जं तु भत्तादी॥.. 1776. विरियं सामत्थं वा, परक्कमो चेव होंति एगट्ठा। गृहण गोवण णूमण, पलियंचणमेव एगटुं॥ 1777. एरिसमायासहिते, जीतेणं देज्ज एगभत्तं तु। सुतववहारे अण्णह, सेसं मायं अतो वोच्छं // 1778. भद्दगं भद्दगं भोच्चा, विवण्णं विरसमाहरे / आयरियाण सगासे, जसोत्थी एव चिंतए॥ 1779. लूहवित्ती महाभागो, एस साधू जितिंदिओ। रसचागं करेइ त्ती, अंतपंतेहिं लाढए / दप्पेणं पंचिंदियवोरमणे संकिलिङ्ककम्मे य। दीहद्धाणासेवी गिलाणकप्पावसाणेसु॥५७॥ 1780. दप्पो वग्गण-धावण-डेवणमादी तु होति णातव्वो। पंचिंदियवोरमणं, उद्दवण विराहणेगटुं॥ 1781. कम्मं तु संकिलिटुं, करकम्मं कुणति अंगदाणे'• तु / दीहेणऽद्धाणेणं, कम्म पलंबादि बहु सेवे॥ 1. पंचमं (मु)। 5. पडिग्गाहे (ता, ब, ला)। 2. गा 1773 और 1774 के स्थान पर नि (4003) में निम्न 6. "माहारे (ता, पा, ब, ला)। गाथा है 7. गाथा में अनुष्टुप् छंद का प्रयोग है। अय-एलि-गावि-महिसी, मिगाणमजिणं च पंचमं होति। 8. “सेविय (मु, ब)। तलिगा-खल्लग-वज्झे, कोसग कत्ती य बितिएणं॥ 9. "साणे य (ला)। 3. पंचमं (ला, मु)। 10. अंगा' (ला, पा)। 4. खवणं (ता, मु)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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