________________ पाठ-संपादन-जी-५४-५७ 183 कोहे बहुदेवसिए, आसव-कक्कोलगादिगेसुं' च। लसुणादिसु पुरिमड़े, 'तण्णादीबंधमुयणे य" // 54 // 1763. पक्खियमतिकामेंतो, बहुदेवसिओ त्ति एस कोधो तु। __ अहवा बहुदेवसिए, 'चाउम्मासादिरित्ते तु॥ 1764. एतं बहुदेवसियं, एत्थ उ सोधी तु होतऽभत्तटुं। आसव वियर्ड भण्णति, तमाइयंते अभत्तटुं॥ 1765. कक्कोलग सेवंते, सोधी साधुस्स होतऽभत्तटुं। " पूगप्फल-जातीफल-लवंग-तंबोलमादिसु य॥ 1766. आदिग्गहणे णेयो, पत्तेयं एत्थ सोधऽभत्तटुं। लसुणाचित्ते पुरिमं, आदिग्गहणा पलंडुम्मि॥ 1767. तण्णगबंधणमुयणे, सोधी एत्थं तु होति पुरिमटुं। आदिग्गहणेणं पुण, हंस-मयूरादिएसुं पि॥ अझुसिरतणेसु निविगतियं तु सेसपणगेसु पुरिम। अप्पडिलेहितपणगे, एगासण तसवहे जं च॥५५॥ 1768. अज्झुसिरं तु कुसादी, परिभोगाकारणे तु णिव्विगति। सेसपणगं तु पंचह, . सपंचभेदं पुणेक्केक्कं // . 1769. पोत्थग-तणपणगं वा, दूसे पणगं च दुप्पडिल्लेहे। अप्पडिलेहियदूसे, पंचमगं चम्मपणगं च॥ 1770. गंडी कच्छवि मुट्ठी, "छिवाडि संपुडगपोत्थगे चेव"। 'साली बीही कोद्दव, रालग ऽरण्णे तणाई च॥ 1771. अप्पडिलेहितदूसे, तूली उवहाणगे य णातव्वे / गंडुवहाणाऽऽलिंगिणि, मसूरगे चेव पोत्तमगे // 1772. पल्हवि कोयवि पावार, णवतए तह य दाढिगाली• य। दुप्पडिलेहितदूसे, एतं बितियं भवे पणगं१२ // 1. 'लमादि (ला)। 'पोत्थगा पंच (बृ)। 2. णादी (पा, मु)। 8. तिण-सालि-वीहि-कोद्दव-रालग-आरण्णगतणं च 3. धणुम्मयणे (ला)। (बृ 3822) / 4. रित्तेसु (ता)। 9. 'तणए (मु), "मए (प्रसा 677), नि 4001 / 5. फलजाई (ब)। 10. दाढीयाली (ता, पा, ब, ला)। . ६.णिव्वीतियं (ला)। 11. उ (नि 4002) / 7. संपुड फलए तहा छिवाडी य (नि 4000), 12. प्रसा 678