________________ 182 जीतकल्प सभाष्य 1753. चाउम्मासिग खुड्डग, भिक्खू थेरो 'उवज्झ आयरिए"। पुरिमड्ड एगभत्तं, आयाम चतुत्थ छटुंता // 1754. पतिदिणपच्चक्खाणं, जहसत्ति अगेण्हणे तु मब्भहितं। खुड्डादी पंचण्ह वि, एक्कासणमट्ठमं अंतो॥ फिडिते सतमुस्सारित, भग्गे' वेगादि ऽवंदणुस्सग्गे / णिव्विगती'-पुरिमेगासणादि सव्वेसु चायामं॥५२॥ 1755. फिडितुस्सग्गे एक्के, पमादिणो सोहि होति णिव्विगति / दोहिं पुरिमड्ड भवे, तिहि फिडिते सोहि भत्तेक्कं // 1756. सव्वे काउस्सग्गे, फिडिते जुयओ पडिक्कमे जो तु। सोधी पच्छाऽऽयामं, उस्सारते इमं वोच्छं // 1757. सतमुस्सारे एक्कं, काउस्सग्गं ति एत्थ णिव्विगतिं। दोसु तु . पुरिमड्ड भवे, एक्कासणगं भवे तीहिं॥.. 1758. सव्वे सयमुस्सारे, आयंबिल एत्थ होति सोधी तु। भग्गे वि य एस च्चिय, सोधी तह वंदणमदेंति॥ अकतेसु तु पुरिमा-ऽऽसणमायाम सव्वसो चउत्थं तु। पुव्वमपेहितथंडिल', निसिवोसिरणे दियासुवणे // 53 // 1759. ण करेंतस्सुस्सग्गं, सोधी एत्थं तु होति पुरिमड़े। दोहि य एक्कासणगं, तिहि अकरणे सोधि आयामं // 1760. सव्वं चिय आवसयं, अकरेंते सोधि होतऽभत्तट्ठो। काउस्सग्गे तह वंदणस्स सोधी तहा ऽकरणे॥ 1761. गाहापच्छद्धेण तु, पुव्वं तु अपेहिते ‘उ थंडिल्ले 11 / णिसिवोसिरणे सोधी, साहुस्स भवे. अभत्तटुं॥ 1762. दियसुवणे णिक्कारण, सोधी साहुस्स होतऽभत्तदें। कोहं परिवसमाणे, कक्कोल्लादीमतो वोच्छं / 1. ज्झाय' (पा, ब, ला)। 2. मगे' (ता)। 3. भंगे (ब, मु)। 4. वंदणादीसु (पा, मु)। 5. गतिय (मु),णिव्वीतिय (ला)। 6. "मड्डे (ता)। 7.x (ता)। 8. x (ला)। 9. डिलि (ला)। 10. सुयणे (ला)। 11. त्थंडि" (ता, ब)।