________________ पाठ-संपादन-जी-४९-५३ 181 कालद्धाणातीए, णिव्विगती' खमणमेव परिभोगे। अविहिविगिंचणियाए, भत्तादीणं तु पुरिमटुं॥४९॥ 1744. विकहादिपमादेणं, कालाईयं करेंत भत्तादी। सोधी णिव्विगती तू, परिभोगे होतऽभत्तटुं। 1745. एवऽद्धाणाईए', अप्परिभोगे वि सोहि णिव्विगतिं / परिभोगेऽभत्तट्ठो, अविधीय विगिंचणे पुरिमं॥ पाणस्सासंवरणे, भूमितिगापेहणे य णिव्विगती। सव्वस्सासंवरणे, अगहणभंगे य पुरिमटुं॥ 50 // 1746. पाणस्सासंवरणे, सोधी साहुस्स होति णिव्विगतिं / भूमीतिगं इमं तू, वोच्छामि समासतो इणमो॥ 1747. उच्चारभूमि पढमा, बितिया पुण होति पासवणभूमी। 'ततिया तु कालभूमी'५, सोहेत्थ अपेहणे ऽविगतिं // 1748. असणादी चतुभेदो, सव्वो वि य एत्थ होति आहारो। तस्स असंवरणम्मी, सोधी साहुस्स पुरिमटुं॥ 1749. अहव णमुक्कारादी, पच्चक्खाणं ण गेण्हते सव्वं / गहितं वा जो भंजति, सोधी सव्वत्थ पुरिमटुं॥ एयं चिय सामण्णं, तव-पडिमा-ऽभिग्गहादियाणं पि। णिव्विइयादी पक्खिय-पुरिसादिविभागतो णेयं // 51 // 1750. एतं चिय पुरिमर्द, सामण्ण विसेसितं मुणेतव्वं / ____ तव पडिम अभिग्गहें या, अगहणभंगे इमं वोच्छं / 1751. तवो बारसहा होति, पडिमा तू एगराइगा। दव्वादी तु अभिग्गह, अगहणभंगे तु पुरिमर्ल्ड 1752. गाहापच्छद्धस्स तु, इमा विभासा तु होति णातव्वा / .. खुड्डादी पंचण्ह वि, णिव्विगतिं अंतऽभत्तट्ठो॥ 1. गति (ला)। 2. खवण' (ला)। 13. 'णातीए (पा)। 4. गह' (ता)। 5.4 (ता)। ६.णिव्वीतिगाइ (ला)।