________________ पाठ-संपादन-जी-३५-३७ 173 1664. आतंके उवसग्गे, तितिक्खया बंभचेरगुत्तीए / पाणिदया-तवहेतू', सरीरवोच्छेदणट्ठाए / 1665. आतंको जरमादी, तम्मुप्पण्णे ण भुंजें भणितं च। सहसुप्पइया वाही, वारेज्जा अट्ठमादीहिं / / 1666. राया सण्णायादी, उवसग्गो तम्मि वी ण भुजेज्जा। सहणट्ठा तु तितिक्खा, वाहिज्जते तु विसएहिं // 1667. भणितं च जिणिंदेहिं, अवि आहारं जती हु वोच्छिदे। लोगे वि भणित विसया, विणिवत्तंते अणाहारे // 1668. तो बंभरक्खणट्ठा, ण वि भुंजेज्जा हि एवमाहारं / पाणदय वास महिया, पाउसकाले व ण वि भुंजे॥ 1669. तवहेतु चतुत्थादी, जाव तु छम्मासिगो तवो होति। छ8 'णिच्छिण्णभरो, छड्डेतुमणो सरीरं तु" / 1670. असमत्थों संजमस्स उ, कतकिच्चोवक्खरं व तो देहं / छड्डेमि त्ति न भुजति, सव्वह वोच्छेद आहारं // 1671. सोलस उग्गमदोसा, सोलस उप्पादणाएँ दोसा तु / दस एसणाएँ दोसा, संजोयणमादि पंचेव // 1672. सीयालीसं एते, सव्वे वी पिंडिता भवे दोसा। जेहिं अविसुद्ध पिंडे, चरणुवघातो जतीण भवे // 1673. एतद्दोसविमुक्को, ‘भणिताऽऽहारो'" जिणेहिं साधूणं / धम्मावस्सगजोगा, जेण ण हायंति तं कुज्जा // 1674. उग्गममादीणं तू, कारणपज्जंतपत्थडो एस। लक्खण आवत्ती दाणमेव कमसो समक्खातं // 1. ‘त्तीसु (पिनि 320, प्रसा 738) / 2. "हेडं (पिनि, ओभा 292) / 3. ठाणं 6/42, उ 26/34, मूला 480, प्रकी 788 / 4. सरीरवोच्छेदणट्ठया होतऽणाहारो (पिनि 320/2) / 5. इस गाथा के बाद प्रतियों में 'घासेसणा सम्मत्ता' का उल्लेख है। 6. पिनि 322 / . 7. हार (पा, ला)। 8. प्रतियों में इस गाथा के बाद 'पिंडपत्थारो सम्मत्तो 8. अहुणा गाहत्थो' का उल्लेख है।