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________________ 172 जीतकल्प सभाष्य 1653. रागेण सइंगालं, दोसेण सधूमगं मुणेतव्वं / राग-द्दोससहगतं, तम्हा तु ण होति भोत्तव्वं // 1654. आहारेंति तवस्सी, विगतिंगालं' च विगतधूमं च। 'झाण-ऽज्झयणणिमित्तं 2, एसुवदेसो पवयणस्स॥ 1655. भणितं सधूममेतं, एत्तो वोच्छामि कारणद्दारं। तं पुण पडिक्कमंतो, चरिमुस्सग्गे विचिंतेति॥ 1656. भोत्तव्व कारणम्मी, किं अत्थी' अहव नत्थि' जइ अत्थी। तो भुंजेज्जा साहू, के पुण ते कारणा? सुणसु॥ 1657. छहिं कारणेहिं साहू, आहारंतो उप आयरति धम्म। छहिं चेव कारणेहिं, णिज्जूहंतो उ आयरति॥ 1658. वेदण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिंताए / 1659. नत्थि छुहाएँ सरिसिया, वियणा भुंजेज्ज तप्पसमणट्ठा। छादो वेयावच्चं, ण तरति काउं अओ भुंजे // 1660. इरियं च ण सोहेती, खुहितो भमलीय पेच्छ अंधारं। थामो वा परिहायति, पेहादी संजमं ण तरे // 1661. आयु-सरीरप्पाणादि छव्विधे पाण ण तरती मोत्तुं / तद्धारणट्ठतेणं, भुंजेज्जा पाणवत्तीयं // 1662. धम्मज्झाणं ण तरति, चिंतेउं पुव्वरत्तकालम्मि। अहवा वी पंचविधं, ण तरति सज्झाय काउं जे॥ 1663. एतेहिं कारणेहिं, छहिं आहारेति संजतो णियमा। छहिं चेव कारणेहिं, णाहारेती इमेहिं तु॥ 1. पिनि (315) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस 6. वि (पिनि 317) / / प्रकार है 7. ठाणं 6/41, पिनि 318, उ 26/32, प्रसा 737, छायालीसं दोसा, बोधव्वा भोयणविधीए। ओनि 580, तु. मूला 479, पंक 891, प्रकी 2. वीतंगालं (पिनि 316), वीतिंगालं (ला)। 785, पंव 365 / 3. झाणाज्झ (पा, ब)। 8. छुहिओ (पंव 366) / 4. अत्थि (पा, ला)। 9. पिनि 318/1, ओभा 290 / . 5. नत्थिं (पा), वित्थि (ला)। 10. वि (ता)। 11. तु. पिनि 318/2 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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