________________ 158 जीतकल्प सभाष्य 1490. णिस्संक काउ तम्हा, भोत्तव्वं संकितं भणितमेतं। मक्खितमिदाणि वोच्छं, मक्खित जं होति संसत्तं // 1491. दुविधं च मक्खितं खलु, सच्चित्तं चेव होति अच्चित्तं। सच्चित्तं तत्थ तिधा, पुढवी आऊ य वणकाए / 1492. पुढवीससरक्खेणं, हत्थे मत्ते व सुक्ख पणगं तु। आवत्ती दाणं पुण, णिव्वितियं होति दातव्वं // 1493. कद्दममक्खितमीसे, लहुगो णिम्मीस होंति लहुगा तु। लहुमासे पुरिम, चतुलहुगे होति आयामं // 1494. ससणिद्भुदउल्ले या, 'पुर-पच्छाकम्म" मक्खितं चतुहा। उक्कुट्ठ-पिट्ठ-कुक्कुसमक्खितमेवादि वणकाए / 1495. ससणिद्ध हत्थमत्ते, पणगं आवत्ति दाण' णिव्विगतिं। उदउल्ले - मासलहुं, आवत्ती दाण पुरिमढें / 1496. पुरकम्म पच्छकम्मे, आवत्ती चतुलहू' मुणेतव्वा। दाणं आयामं तू, वणकाय अतो तु वोच्छामि // 1497. उक्कुट्ठ-पिट्ठ-मक्खित,परित्तहत्थे य मत्त सच्चित्ते। मासलहू आवत्ती, दाणं पुण होति पुरिमहूं। 1498. एते चेव उ मक्खित, हत्थे मत्ते य होतऽणंतेसु। आवत्ती मासगुरुं, दाणं पुण होति भत्तेक्कं // 1499. छिंदंति एव सागं, छिंदंती एव जं रसालित्त / उक्कुट्ठमक्खितेतं, परित्तऽणतेण वा होज्जा / 1500. सेसेहि तु काएहिं, तीहि वि तेऊ-समीरण-तसेहिं / सच्चित्तमीसगेण व, मक्खित ण विवज्जते किंची॥ 1. संसटुं (ता, ब, ला)। 2. पिनि (242) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है- तिविधं पुण सच्चित्तं, अच्चित्तं होति दुविधं तु। 3. णिव्वी (पा, ला)। 4. “पच्छा अओ (ता, ला)। 5. दाणे (ला)। 6. 'मद्धं (ला)। 7. लहुं (ब)। 8. रसो (ब)। 9. पिनि (243/3) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है सच्चित्तं मीसं वा, न मक्खितं अस्थि उल्लं वा।