________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 157 1480. बीएण गहित संकित, विगडंतऽन्ने य णवरि संघाडे / पगतं पहेणगं वा, सोउं णिस्संकितो भुंजे॥ .. 1481. णीसंकगाहि ततिओ, विगडेंत णिसम्ममण्णसंघाडं / संका पुणाइ जारिस, लद्ध मए अमुगगेहम्मि॥ 1482. महती भिक्खा तारिस, एतेहि वि लद्ध किण्ण' होज्जाहि?। णीसंकित काऊणं, भुंजति तं संकितो चेव॥ 1483. पढमो दोसु वि लग्गो, बितिओ पुण गहण भोयणे ततिओ। जं संकितमावण्णो, पणुवीसा चरिमए सुद्धो॥ * 1484. छउमत्थो सुतणाणी, गवेसती उज्जुगं पयत्तेणं / - आवण्णो पणुवीसं, सुतणाणपमाणतो सुद्धो॥ 1485. साहू सुतोवउत्तो, सुतणाणी जइ वि गिण्हति असुद्धं / ___ तं केवली वि भुंजति, अपमाण सुतं भवे इहरा // 1486. सुत्तस्स अप्पमाणे, चरणाभावो ततो य मोक्खस्स। _ 'मोक्खाभावाओ चिय, पयत्तदिक्खा"५ णिरत्था उ॥ 1487. 'सोलस उग्गमदोसा'१०, णव एसणदोस संक मोत्तूणं। पणुवीसेते दोसा, संकितमासंकितो वोच्छं / 1488. जदि संका दोसकरी, एवं सुद्धं पि होति तु असुद्धं / णीसंकमेसितं१२ ति व, अणेसणिज्जं पि निद्दोसं // 1489. भण्णति संकितभावो, अविसुद्धो अवडितकतरपक्खे५३ / एसिं पि कुणय ऽणेसिं, अणेसिमेसिं विसुद्धो तु॥ 1. पिनि (240/2) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है- हियएण संकितेणं, गहिता अन्नेण सोहिता सा य। - 2. णिस्सम्म" (ता, ला)। 3. पुणाई (पा, ला)। 4. लद्धं (पा)। 5. x. (ला)। 6. उज्जुओ (पिनि 239) / / 7. ओहो (पिनि 239/1) / 8. तु (पिनि 240) / 9. मोक्खस्स वि य अभावे दिक्खपवित्ती (पिनि)। 10. उग्गमदोसा सोलस (पिनि 238/2) / 11. "त निस्संकिते (पिनि)। 12. निस्संक' (पिनि 240/4) / 13. पिनि (241) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है अविसुद्धो परिणामो, एगतरे अवडितो उ पक्खम्मि। 14. कुणति (पिनि)।