________________ 156 जीतकल्प संभाष्य 1469. आदाणे अहिगरणं, पडिबंधो छोभगादिदोसा य। पाणवध-साडणम्मी', छोभग-पडिणीय उड्डाहो // 1470. इय मूलक्कम्मेणं, पिंडो उप्पादितो ण कप्पति तु / उप्पादणेस भणिता, गवेसणा चेव य समत्ता॥ 1471. एवं तु गविट्ठस्सा', उग्गम-उप्पादणाविसुद्धस्स। गहणविसोधिविसुद्धस्स होति गहणं तु पिंडस्स // 1472. उग्गमदोस गिहीतो, उप्पादण होति समणउत्थाणा / गहणेसणाइ दोसे, आय-परसमुट्ठिते वोच्छं / / 1473. दोण्णि वि समणसमुत्था, संकित तह भावतोऽपरिणतं च। सेसा अट्ठ वि णियमा, गिहिणो तु समुट्ठिते जाण // 1474. सा गहणेसण चतुहा, णामं ठवणा य दव्व भावे य। दव्वे वाणरजूहं, सव्वं वत्तव्व वित्थरतो // 1475. दव्वम्मि एस भणिता, भावे गहणेसणं तु वोच्छामि। दसहि पदेहिं सुद्धं, संकितमादी इमेहिं तु॥ 1476. संकित मक्खित णिक्खित्त, पिहित साहरण दायगुम्मीसे। अपरिणत लित्त छड्डित, एसणदोसा दस हवंति // 1477. संकाए चउभंगो, पढमो गहणे य भोयणे चेव। "बितिओ गहण ण भोयण५०, ततिओ पुण संकितो भोगे॥ 1478. णीसंकितो तु चरिमे, किह पुण संका हवेज्ज? जह कोई। भिक्ख पविट्ठों लद्धम्मि, हिरिमं भिक्खं विगिंचेति // 1479. किण्णु हु खद्धा भिक्खा, 'लद्धा? ण य तरति पुच्छिउं तहियं। 1 'हिरिमं इति संकाए, भुंजति इइ 12 संकितो चेव॥ 1. णम्मि (मु, ता)। 2. स्स (पा, ला)। 3. x (ता, पा), पिनि 233 / 4. पिनि (234) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है- उप्पादणाएँ दोसा, साहूउ समुट्ठिते वियाणाहि। 5. उ (पिनि 235) / 6. x (ला)। 7. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2. कथा सं. 51 / 8. साहरिय (पिनि 237, प्रसा)। 9. प्रसा 568, पंव 762, पंचा 13/26, तु. मूला 462 / 10.x (ब)। ११.दिज्जति न य तरह पुच्छिउँ हिरिमं (पिनि 240/1) / १२.इति संकाए घेत्तुं तं भुंजति (पिनि)।