________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 155 1458. भणितेस चुण्णपिंडो, अहुणा वोच्छामि जोगपिंडं तु। तहियं जोग अणेगा, इणमो तू संपवक्खामि॥ 1459. सूभग-दोभग्गकरा, 'जोगा आहारिमा" य इतरे य। आघंस धूववासो', पादपलेवाइणो इतरे // 1460. तत्थाहरणं इणमो, अणहारिमपादलेवजोगम्मि। __ आभीरगविसयम्मी, जह कत सुण तावसेहिं तु // 1461. नदिकण्ह वेण्णदीवे, पंचसया तावसाण णिवसंति। पव्वदिवसेसु कुलवति, 'पालेवे लिंप पादे तु"॥ 1462. पाउगदुरूढ सलिलुप्परेण उत्तरिउ एति णगरं ति। आउट्ट लोग पूया, पच्चक्खा एतें देव त्ति॥ 1463. जणसावगाण 'खिंसण, तहियं तू वइरसामिमाउलया। * आयरियअज्जसमिता, तेसिं च णिवेदितं तेहिं // 1464. तेहि भणिता य वच्चह, ते मातिट्ठाणि पादलेवेणं / ___णदिमुत्तरंति' सगिहे, णेउसिणोदेण धोव्वह णं॥ 1465. तेहि य सगिहे णेउं, पाय बला धोयऽणिच्छमाणाणं। .. किं जाणति लोगो? ती, दिण्णं विणएण बहुफलयं॥ 1466. पडिलाभित वच्चंता, णिबुड्डु णदिकूल मिलिय समियाए। विम्हय' पंचसता तावसाण पव्वज्ज साहा य // 1467. एमादीजोगेहिं, आउट्टावेत्तु एसती पिंडं। सो ण वि कप्पे एत्तो, वोच्छामी मूलकम्मं तु॥ 1468. दुविधं तु मूलकम्म, गब्भादाणे तहेव परिसाडे। दुविधे वि मूलकम्मे, पच्छित्तं होति मूलं तु॥ 1. जे जोगाऽऽहारिमे (नि 4469) / 2. वास धूवा (नि)। 3. पिनि 231/1 / 4. पालेवुत्तारसक्कारो (पिनि 231/2), ___ पादलेवुत्तारसक्कारो (नि 4470) / 5. खिंसणा तहिं (ला)। 6. "टाणिं (ता)। 7. णति' (पा, ला)। 8. मिलण (पिनि 231/4, नि 4472) / 9. विम्हिय (मु, ब)। १०.कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 50 /