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________________ 154 जीतकल्प सभाष्य 1447. पडिमंतथंभणादी, सो वा अण्णो व से करेज्जाहि। .. पावाजीवी मायी, कम्मणकारी 'य गहणादी' // 1448. विज्जा-मंताभिहिता, अहुणा वोच्छामि चुण्ण-जोगादी। वसिकरणादी चुण्णा, अंतद्धाणंजणादीया / 1449. चुण्णे जोगे चउलहु, आवत्ती दाणमेत्थ आयामं / णिदरिसणं दोण्हं पी, उल्लिंगेऽहं समासेणं॥ 1450. दिटुंत चुण्ण-जोगे, जह कुसुमपुरम्मि केइ आयरिया। जंघाबलपरिहीणा, ओमे सीसस्स तु रहम्मि / 1451. कहयंति चुण्णजोगा, अंतद्धाणादि तत्थ दो खुड्डा। पच्छण्णठित णिसामे, अवधारे अंजणं एक्कं // 1452. वीसज्जिता वि साहू, गुरूहि देसंत खुड्डग णियत्ता। आयरिएहिँ य भणिता, दुखू कतं जं णियत्ता' भे॥ 1453. भिक्खे परिहायंते, थेराणं 'ओमें तेसि'६ देंताण। किं ओम गुरूणं तू, कुव्वामो? खुड्ड सामत्थे // 1454. कुणिमो अंतद्धाणं, दव्वे मेलित्तु अच्छियंजणया। सह भोज्ज चंदगुत्ते, ओमोदरियाएँ दोब्बल्लं // 1455. चाणक्क पुच्छ इट्टालचुण्ण 'दारपिहणं तु धूमो'" य। दटुं० कुच्छ- पसंसा, थेरसमीवे उवालंभो // 1456. एवं वसिकरणादिसु, चुण्णेसु वसीकरेत्तु जो तु परं। उप्पाएती पिंडं, सो होती चुण्णपिंडो तु॥ 1457. जे विज्ज-मंतदोसा, ते च्चिय वसिकरणमादिचुण्णेहिं / एगमणेगपदोसं, कुज्जा पत्थारओ वावि२ // 1. भवे बीयं (पिनि 229, नि 4461) / 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 49 / 3. दिसंत (ला)। 4. दुट्ठ (पा)। 5. भणित्ता (ता)। 6. तेसि ओमें (पिभा)। 7. x (पा, ला)। 8. पिभा 36 तथा नि 4464 में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है सहभुज्ज चंदगुत्ते, ओमोदरियाएँ दोब्बल्लं। 9. दारं पिहित्तु धूमे (पिभा 37), दारं पिहेउ धूमो (नि 4465) 10. दिस्सा (नि)। 11. तुवा' (ब)। 12. पिनि 231, नि 4466 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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