________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 153 1436. तत्थ वि भद्दग-पंता, दोसा तह चेव होंति णातव्वा। भणितेस संथवो तू, विज्जा-मंते अतो वोच्छं / / 1437. विज्जा-मंते चतुलहु, आवत्ती दाण होति आयामं / विज्जा-मंतविसेसं, उल्लिंगेऽहं समासेणं // 1438. विज्जा-मंतविसेसो, विज्जित्थी पुरिस होति मंतो तु। अहव ससाहण विज्जा, मंतो पुण पढितसिद्धो तु // 1439. विज्जाएँ उ णिदरिसणं, जह कोई भिच्छुवासगो पत्तो। साहूण. पिंडिताणं, अह उल्लावोर इमो तत्थ // 1440. इय पंतभिच्छुवासो, साहूण ण देति तत्थ भणएक्को। जइ इच्छह विज्जाए, घत-गुल-वत्थाणि दावेमि॥ 1441. पेच्छामो ति य भणिते, गंतुं विज्जाभिमंतिओ बेति। किं देमि? त्ती घत-गुल-वत्थाणिं दिण्ण साहरणं॥ 1442. अण्णेहि य सो भणितो, कह' ते दिण्णं ति भत्त-पाणादी? / तो बेति तगो रुट्ठो, केण हितं? केण मुट्ठो मि?॥ 1443. पडिविज्जथंभणादी, सो वा अण्णो व से करेज्जाहि। पावाजीवी मायी, कम्मणकारी ‘य गहणादी" // 1444. मंतम्मि उदाहरणं, पाडलिपुत्ते मुरुंडराइस्स। उप्पण्ण सीसवेदण, पालित्तयकहण ओमज्जे // 1445. जह जह पदेसिणि जाणुगम्मि पालित्तओ भमाडेति / तह तह सीसे वियणा, पणस्सति° मुरुंडरायस्स" // 1446. मंतेणं अभिमंतिय, तह चेव दवाव दिज्ज कोयिं तु। तत्थ वि तेच्चिय दोसा, पडिमंतादी इमे होंति॥ .. Ta 1. कोयिं (ता, ब)। 8. ओमग्गे (ब), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, 2. उल्लावा. (ला)। कथा सं. 48 / 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 47 / 9. सिणी (मु, ला)। . 4. इयं (ता, ला)। 10. णस्सती (ता), य णस्सति (पा)। 5. किह (मु, पा, ब)। 11. "डयाणस्स (ता), “स्सा (ला), 6. पावजीवी (ला)। पिनि 228/1, नि 4460 / 7. भवे बितिए (नि 4459), पिनि 228 /