________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 159 1501. सच्चित्तमक्खितम्मि उ, हत्थे मत्ते य होति चउभंगो। पढमम्मि दो वि मक्खित, हत्थो बितियम्मि ण वि मत्तो' / 1502. ततिए मत्तो मक्खित, ण वि हत्थो चरिमए ण एक्को वि। आदितिगे पडिसेधो, चरिमो भंगो अणुण्णातो॥ 1503. अच्चित्तमक्खित दुहा, गरहितदव्वेण वावि इतरेणं / गरहित होति दुहा तू, लोगे तह उभयतो वावि // 1504. मंस-वस-सोणियाऽऽसव-लसुणादी गरहितेस लोगम्मि। मुत्तपुरीसादीहिं, गरहितमेतं भवे उभए / . 1505. दुविधे तु 'गरहिते तू, आवत्ती चउलहू मुणेतव्वा। दाणं आयामं तू, अगरहितेत्तो पवक्खामि॥ 1506. अगरहित कूरकुसणं, गोरस-घत-तेल्लमादिहिं जं तु। संसत्तमसंसत्तं, दुविहं पी होति णातव्वं // 1507. अच्चित्तमक्खितम्मी, चउसु वि भंगेसु होति भयणा तु। . अगरहितेण तु गहणं, पडिसेधो गरहिते होति // 1508. संसज्जिमेहिं वज्जं, अगरहितेहिं पि गोरसदवेहि। मधु-घत-तेल्ल-'गुलेहि य", मा मच्छि-पिवीलियाघातो॥ 1509. गोरससंसत्ते या, घत-तेल्ल-गुलादि-कीडिसंसत्ते। चतुलहुगा आवत्ती, दाणं पुण होति आयामं // 1510. लोइयगरहित मज्जा-मंस-वसादीहिँ मक्खितं जं तु। नवरं पुराण भावित, देसि व पडुच्च गहणं तु॥ 1511. दोहिं पि गरहितेहिं, मुत्तुच्चाराइ होति अग्गहणं / मक्खित भणितं एतं, एत्तो वोच्छामि णिक्खित्तं // 1.1501 और 1502 गाथा के स्थान पर पिनि (244) में निम्न गाथा प्राप्त होती हैसच्चित्तमक्खितम्मी, हत्थे मत्ते य होति चउभंगो। आदितिगे पडिसेधो, चरिमे भंगे अणुण्णातो॥ 2. हितेए (ला)। 3. लहु (ला)। 4. 'मादीहिं (म)। 5. x (ब, ला), पि य (पा, मु)। 6. पिनि 245 / 7. 'दव्वेहिं (पा, ला)। 8. गुलेहिं (पिनि 245/1) /