________________ 32 जीतकल्प सभाष्य कथाओं का विस्तार पिण्डनियुक्ति की मलयगिरीया टीका एवं निशीथ भाष्य से किया गया है। समिति और गुप्ति से सम्बन्धित प्रायः कथानकों का विस्तार भाष्यकार ने स्वयं किया है। नंदिषेण की कथा लगभग बीस' गाथाओं में है। भाष्यकार ने कथाओं के माध्यम से सैद्धान्तिक विषयों की भी सुन्दर प्रस्तुति दी है। कथाओं के विस्तार हेतु देखें परि. सं. 2 / जीतकल्प चूर्णि एवं व्याख्या ग्रंथ ____ जीतकल्पसूत्र पर आचार्य सिद्धसेन ने चूर्णि लिखी है। संक्षिप्त होते हुए भी चूर्णि में गाथा की अच्छी व्याख्या है। चूर्णि में भाष्य गाथाओं का उल्लेख नहीं है, इससे यह संभावना की जा सकती है कि भाष्य से पूर्व ही चूर्णि लिखी जा चुकी थी। चूर्णिकार आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के बाद के हैं। सिद्धसेन दिवाकर जिनभद्रगणि से भी पूर्ववर्ती हैं। पंडित दलसुखभाई मालवणिया का अभिमत है कि बृहत्क्षेत्रसमास के टीकाकार और चूर्णिकार एक ही सिद्धसेन होने चाहिए अतः ये उपकेश गच्छ के देवगुप्त सूरि के शिष्य तथा यशोदेवसूरि के गुरु भाई थे। ___ आचार्य सिद्धसेन की चूर्णि के निम्न उद्धरण 'बितियचुन्निकाराभिप्पाएण' 'बिइयचुण्णिकारमएण पोत्थय से यह ज्ञात होता है कि इस पर एक चर्णि और लिखी गई लेकिन वर्तमान में वह उपलब्ध नहीं है। यदि दूसरे चूर्णिकार जिनदास की कृतियों के लिए यह निर्देश किया हो तो वह अन्वेषण का विषय है। वि. सं. 1227 में श्रीचंदसूरि ने जीतकल्प सूत्र पर 'विषमपद व्याख्या' नामक व्याख्या लिखी। संस्कृत भाषा में लिखी यह व्याख्या अनेक महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों को हृदयंगम करने में सहायक है। जीतकल्प पर 1700 श्लोक प्रमाण एक टीका तिलकाचार्य ने लिखी थी, जो वि. सं. 1275 में पूर्ण हुई। ये तिलकाचार्य शिवप्रभसूरि के शिष्य थे। जिनरत्नकोश के अनुसार इस पर एक अवचूरि भी लिखी गई, जिसका कर्तृत्व अभी अज्ञात है। जीतकल्प भाष्य पर पूर्ववर्ती ग्रंथों का प्रभाव पांच व्यवहार, आचार्य की गणिसंपदाएं, संलेखना, भक्तपरिज्ञा आदि तीनों पंडित मरण आदि विषयों का वर्णन भाष्यकार ने व्यवहारभाष्य से लिया है क्योंकि प्रायः गाथाएं कुछ शब्दभेद के साथ अक्षरशः मिलती हैं। साधु की भिक्षाचर्या एवं उसके दोषों का वर्णन आचारचूला, स्थानांग, भगवती और दशवैकालिक आदि ग्रंथों में मिलता है। पिण्डनियुक्ति में नियुक्तिकार ने व्यवस्थित रूप से भिक्षाचर्या के दोषों का वर्णन किया है। निशीथ सूत्र एवं उसके भाष्य में भिक्षाचर्या से सम्बन्धित विशद सामग्री है। भाष्यकार ने 1. जीभा 826-46 / २.जीचू पृ. 19 /