________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 133 1217. पढमे चउलहुगा तू, बिति 'ततिए चउगुरू" मुणेतव्वा। तवकालेहि विसिट्ठा, चउगुरुगा होंति णातव्वा॥ 1218. चतुलहुगे आयामं, चउगुरुगे होति तूरे चउत्थं तु। मीसज्जातं भणितं, ठवणाभत्तं अतो वोच्छं / / 1219. ठवणाभत्तं दुविधं, इत्तरठवितं तहेव चिरठवितं। इत्तरठविते पणगं, चिरठविते होति मासलहुं // 1220. पणगे णिव्विगती तू, लहुमासे दाण होति पुरिमड्डं। इत्तर चिरठविते या, समासतो लक्खणं वोच्छं / 1221. संघाडग हिंडते, परिवाडिठितेसु तिसु तु गेहेसु। 'एक्को दोसुवयोगं, करेति भिक्खाएँ गेहेसु॥ 1222. बितिओ साणादीणं, देयुवओगं घरे तहेक्कम्मि। * तेण परेण चउत्थे, उक्खित्ता इत्तरट्ठविता॥ 1223. चतुथघरा तु परेणं, चिरठविता जाव पुव्वकोडी उ। / एतं ठविताऽभिहितं, एत्तो वोच्छामि पाहुडियं // 1224. 'सा पाहुडिया दुविधा, 'सुहुमा तह बादरा य बोद्धव्वा"। ओसक्कण उस्सक्के', 'एक्केक्का सा भवे दुविधा" / 1225. सुहुमाए लहुपणगं, आवत्ती दाण होति णिव्विगति। चउगुरुग बादराए, आवत्ती दाणऽभत्तटुं॥ 1226. एत्थं सुहुमा तु इमा, जह काइ अगारि कंतमाणी उ। भणिता तु चेडरूवेण, देहि अम्मो! महं' भत्तं // 1227. भणितोद्वितो त्ति होही, जाया! कंतामि ता इमं पेखें। जइ तं सुणेति साहू, ण गच्छते तत्थ आरंभो // 1228. 'अस्सुट्ठिता भणंती, तुज्झ मि" देमि त्ति किं ति परिहरति। किह दाणि ण उट्ठिस्से?, साधुपभावेण लब्भामो॥ 1. तति चेव गुरू (ता)। 2. तु (पा, ला), जु (ब)। 3. पाहुडिया वि य (पिनि 131) / 4. बादर सुहुमा य होति नातव्वा (पिनि)। 5. उस्सक्कण (पिनि)। 6. कप्पट्ठीए समोसरणे (पिनि)। 7. सहुं (पा)। 8. अन्नट्ठ उट्ठिया वा तुब्भ वि (पिभा 27) / 9. उट्ठिहिसी (पिभा)।