________________ 130 जीतकल्प सभाष्य 1184. एगेण कतमकज्जं, करेति तप्पच्चया पुणो अण्णो। साताबहुलपरंपर, वोच्छेदो संजम-तवाणं // 1185. जो जहवायं ण कुणति, मिच्छद्दिट्टी तओ हु को अण्णो? / वड्डेति य मिच्छत्तं, परस्स संकं जणेमाणो / 1186. दुविधा विराधणा खलु, संजमतो चेव तह य आयाए। आहाकम्मग्गहणे, तत्थ इमा संजमे होति / / 1187. वड्डेति तप्पसंगं, गेही य परस्स अप्पणो चेव। सजियं पि भिण्णदाढो, ण मुयति णिद्धंधसो पच्छा // 1188. खद्धे गिद्धे य रुया, सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरगाण य हाणी, कुणति किलेसं 'च किस्संतो* // 1189. पाएण मकिच्चेण' य, आहाकम्मं तु भारियं होति। एसा आतविराधण', तम्हा तू तं ण भोत्तव्वं // 1190. अब्भोज्जे गमणादी, पुच्छा दव्व-कुल-देस-भावे य। एव जयंते छलणा, दिटुंता तत्थिमे दोण्णि // 1191. जह वंतादि अभोज्जं, जाव य चंदो य सूरउदयं च। - उज्जाणा दोण्णि भवे, सवित्थरं सव्व बोद्धव्वं // 1192. जह ते दंसणकंखी, अपूरितिच्छा विणासिता रण्णा। दिढे वितरे मुक्का, एमेव इहं समोतारो॥ 1193. आहाकम्मं भुंजति, ण पडिक्कमते य तस्स ठाणस्स। एमेव अडति बोडो, लुक्कविलुक्कोर जह कवोडो // 1194. आहाकम्मदारं", एवमिणं मे समासतो कहितं / आवत्ती दाणं वा, विसोहिमेतेसिमं वोच्छं / / 1. पिनि 83/2 / 9. “ज्जो (पा, ला)। 2. मिच्छादिट्ठी (ला, मु)। 10. पिनि 84/1, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, 3. पिनि 83/3 / कथा सं. 36, 37 / 4. गाथाओं के क्रम में पिनि में यह गाथा नहीं है। 11. पिनि 91/4 / 5. पिनि 83/4 / 12. लुक्कणिलु (ला, पा, मु)। 6. किलिस्संतो (पिनि 83/5) / 13. पिनि 92 / 7. पकिः (मु, ला), यहां मकार अलाक्षणिक है। 14. “कम्मियदारं (ता, पा)। . 8. “हणया (ता, ब. ला)।