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________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 129 1174. चउरो अतिक्कम वतिक्कमे य अतियार तह अणायारे। आहाकम्मे एते, चउरो वि जहक्कम जोए / 1175. तस्स पुण संभवो ऊ, आहाकम्मस्स कह उ होज्जाहि?। णिदरिसणं जह भरतेरे, सड्ढा दट्टण मरुपूयं // 1176. महसड्ढादीएसुं, तेसु वि सद्धा ततो समुप्पण्णा। _अम्हे वि य साहूणं, करेमि भत्तं तु सविसेसं॥ 1177. साली-घत-गुल-गोरस, नवेसु वल्लीफलेसु जातेसुं। 'दाणे अभिगमसड्डी', आहाकम्मे निमंतणया॥ 1178. आमंतिय पडिसुणणा, सव्वासु ऽसुभो अतिक्कमो होति। पदभेदादि वतिक्कम', गहिते होती अतीयारो // 1179. मुहछूढे ऽणायारो, केयी गिलियम्मि बेंति अणायारं / . किं कारण? छूढे वी, पुणरावत्ती कयाइ भवे॥ 1180. तो खेलमल्लगम्मी, णिग्गलति ण एव पत्तऽणायारं / गिलियम्मि अणायारो, तस्स णियत्ती ततो नत्थि // 1181. सेसेहि णियत्तेज्जा, एग दुग तिगे व एत्थ दिटुंतो। जह तिहि आगास ठितो, पदेहि विणियत्तिओं हत्थी // 1182. चउरो गहणे एवं, अतिक्कमादी तु वण्णिता एते। आणादी चउरो वि य, दारं एत्तो पवक्खामि / / 1183. आणं सव्वजिणाणं, गेण्हंतो तं अतिक्कमति लुद्धो। आणं च अतिक्कमंतों, कस्साऽऽदेसा कुणति सेसं? // 1. पिनि (82) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है निद्दरिसणं चउण्ह वि, आहाकम्मे निमंतणया। 2. सरए (ब)। 3. पुण्णट्ठ दाणसड्डा (नि 2662), दाणट्ठकरणसड्ढा (पंक 1285), पुण्णट्ठकरणसड्डा (बृ 5341) / 4. आहायकते (पिनि 82/1) / 5. 'क्कमो (ता, पा)। 6. पिनि 82/3 में यह गाथा कुछ अंतर के साथ मिलती है आहाकम्मामंतण, पडिसुणमाणे अइक्कमो होति। पदभेदादि वइक्कम, गहिते ततिएतरो गिलिए। 7. छंद की दृष्टि से ऽणायारं पाठ होना चाहिए। 8. ट्ठितो (ता, पा, ब, ला)। 9. णियत्तओ (ता, पा), णियत्तिउ (ला)। 10. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 35 / 11. पिनि 83/1 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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