________________ 128 जीतकल्प सभाष्य 1163. आयट्ठा जा दुछडा, आयट्ठा चेव तिछडरद्धा य। एस चउत्थो भंगो, कतरे कप्पे ण कप्पति वा? // 1164. पढम-ततिए ण कप्पे, बितिय-चउत्था उ दोण्णि वी कप्पे। एमेव पाणगे वी, खाइम तह साइमे चेव // 1165. साहुणिमित्ता रद्धं, जाव ण फासुं कडं तु ताव कडं। फासुकड णिट्ठितं तू, चाउलधुवणादि पाणम्मि // 1166. फलमादि छिण्णछोडित, फासुकडं निहितं मुणेतव्वं / एमेव साइमे वी, अल्लगमादी मुणेतव्वा॥ .. 1167. सव्वत्थ तु' चतुभंगो, जोएतव्वो जहक्कम होति। एत्थं तू परिहरणा, विहि अविही सव्व बोद्धव्वा // 1168. छायं पि विवज्जेंती, केयी फलहेतुगादि वुत्तस्स। तं तु ण जुज्जति जम्हा, फलं पि कप्पं बितियभंगे' / 1169. परपच्चइया छाया, ण वि सा 'रुक्खो व्व' वड्डिता कत्ता। नट्ठच्छाए य दुमे, कप्पति एवं भणंतस्स // 1170. वड्डति' हायति' छाया, तच्छिक्कं पूइयं पि व ण कप्पे। ___ण य आहाय सुविहिते, णिव्वत्तयती रवीछाया / / 1171. अघणघणचारिगगणे, छाया नट्ठा दिया पुणो होति / कप्पति णिरातवे णाम, आतवे तं विवज्जंतु // 1172. तम्हा ण एस दोसो, 'तु संभवे कम्मलक्खणविहूणो। तं पि य हु अतिघिणिल्ला, वज्जेमाणा अदोसिल्ला॥ 1173. परपक्ख सपक्खे त्ती, एमेतं वणितं समासेणं / चउरो त्ति दारमहुणा, वोच्छामि समासतो चेव॥ 1. मु (ता, ब)। 2. पिनि 80/1 / 3. रुक्खेव (पिनि 80/2) / 4. उ (पिनि)। 5. वड्डती (ता, पा. ब)। 6. हायती (ला, ब), हाती (ता, पा)। 7. च्छायं (पिनि 80/3), 'च्छाया (ता, ब)। 8. ज्जेउं (पिनि 80/4) / 9. संभवते (पिनि 80/5) /