________________ 114 जीतकल्प सभाष्य 1020. एसो तदुभयभेदो, दोण्णि वि णासंति एत्थ सुत्तत्था। एवं तु ण कातव्वं, दोसा तेच्चेव पुव्वुत्ता / / 1021. णाणायारो एसो, अट्ठविगप्पो जिणेहिं पण्णत्तो। उद्देसगमादीणं, पच्छित्तुदितं इमं कमसो॥ णिव्विगतिय पुरिमड्डेगभत्त आयंबिलं चाणागाढे। पुरिमादी खमणतं, आगाढे एवमत्थे वि' // 24 // 1022. उद्देसे णिव्विगति, पुरिमडं सोहि होति' अज्झयणे। सुतखंधे एगभत्तं, अंगम्मि य होति आयामं // 1023. एवं ताऽणागाढे, आगाढजोगम्मि' होति पुरिमादी। अंतम्मि होति खमणं, एमेव य होति अत्थे वि॥ ___ सामण्णं पुण सुत्ते, मतमायाम' चतुत्थमत्थम्मि। अप्पत्तापत्तावत्तवायणुद्देसणादीसु // 25 // 1024. ओहो सामण्णं तू, सव्वम्मी चेव होति सुत्तम्मि। अविसेसित सुत्तत्थे, आयाम चउत्थ कमसो तु॥ . 1025. अप्पत्तो दुविधो तू, सुतेण अत्थेण चेव बोद्धव्वो। पुव्विल्ल सुत्त अत्थे, बितिय अपत्तो' मुणेतव्वो // 1026. तितिणिआदि अपत्तो, अव्वत्तो वय सुते य णातव्वो। वायंतस्स तु एते, चतुगुरुगा उद्दिसादिसु य॥ 1027. पत्तमवाएंतस्स वि, उद्दिसणादीसु चेव यं पदेसु। चतुगुरुगा बोद्धव्वा, अववादे कारणा सुद्धो॥ 'कालाऽविसजणादिसु मंडलिवसुहापमजणादिसुर य२। णिव्वीतियं अकरणे, अक्खणिसेज्जा अभत्तो" // 26 // HTHHHHHHHA १.णिवीतिय (ला)। 8. प्रतियों में इस गाथा के बाद 'अप्पत्ते त्ति गतं' का 2. ति (ब)। उल्लेख है। 3. होत (ता)। 9. तुद्दि (पा)। 4. पूर्वार्द्ध के दूसरे चरण में छंदभंग है, यहां 'आगाढ- 10. काल अवि (ला)। जोगम्मि' के स्थान पर 'अगाढ जोगम्मि' पाठ होना 11. "लिवसहि (ला)। चाहिए। 12. चसद्दा वंदण-काउसग्गे ण करेति तहावि खमणं 5. “याम (पा) चेव (चू)। 6. पत्तापत्त (ता), णादिसु य (ला)। 13. णिव्वि (पा, ब), णिव्वीयं च (ला)। 7. अप्पत्तो (पा, ब, ला)। 14. ण भत्तट्ठो (ला, ता)।