________________ पाठ-संपादन-जी-२७ 115 1028. कालाविसज्जणादी, ण पडिक्कंतं तु जमिह कालस्स। __तिविधा य होति मंडलि, वसुधा भूमी मुणेतव्वा॥ 1029. भोयण सुत्ते अत्थे, तिविधेसा मंडली मुणेतव्वा / कालऽविसज्जण मंडलिभूमीअपमज्जणे' विगती॥ 1030. सुत्ते वा अत्थे वा, ण करि णिसेज्जं च अक्ख ण रएति। चस्सद्देणं वंदण, उस्सग्ग ण कुव्वति चउत्थं // 'आगाढऽणागाढम्मि'', सव्वभंगे य देसभंगे य। जोगे छट्ठ चउत्थं, चतुत्थमायंबिलं कमसो॥२७॥ .1031. जोगो तु होति दुविधो, आगाढो चेव तह अणागाढो। दुविधे वि होति भंगो, सव्वे देसे य णातव्वो॥ 1032. सव्वब्भंगे छटुं, होति चतुत्थं तु देखें आगाढे। ___णागाढे तु चतुत्थं, सव्वे देसे य आयामं // 1033. कह भंगो सव्वम्मी, कह वा देसम्मि एव चोदेति। भण्णति फुडविगडाहिं, गाहाहिं इमं पवक्खामि / 1034. विगति अणट्ठा भुंजति, न कुणति आयंबिलं ण सद्दहति / एसो तु सव्वभंगो, देसे भंगो इमो होति / 1035. काउस्सग्गमकाउं, भुंजति भोत्तूण वा कुणति पच्छा। संदिसह त्ति ण भणती, एवं देसे भवे भंगो।। 1036. णाणायारो भणितो, अट्ठविधो एस तू समासेणं। अहुणा अट्ठविधो च्चिय, आयारो दंसणे होति / 1037. णिस्संकित णिक्कंखित, णिव्वितिगिच्छा' अमूढदिट्ठी य। उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल' पभावणे अट्ठ / 1038. दंसणयारो अट्ठह', एमेसो होति तू समासेणं / एतेसि विवक्खो ऊ, अतियारो होति सो य इमो॥ 1. "ज्जणा (पा, ब, ला)। 2. x (ब)। 3. “ढअंणा' (पा, ता)। 4. तत्थ (नि 1595) / 5. णीसं (पा, ला)। 6. "तिगिंछा (ला)। 7. "ल्ले (ला)। 8. नि 23, दशनि 157, उ 28/31, प्रज्ञा 1/101/14, पंचा 15/24, मूला 201 / 9. अट्ठहा (पा, मु)।