________________ 108 जीतकल्प सभाष्य 960. कडजोगी गीतत्थो, जं वुत्तं होति जो' व गहितत्थो। पिंडेसण - पाणेसण - वत्थेसण - सेज्जमादीणं // 961. अहवा छेदसुतादी, सुत्तत्थाहिज्जितो तु गीतत्थो। गहितं तेणुवउत्तेण, णात पच्छा असुद्धं तु॥ 962. केण असुद्धं? भण्णति, उग्गम-उप्पायणेसणादीहिं। अहवा वि संकितादी, सो सुज्झति विहिविगिचंतो॥ 'कालद्धाणाऽतिच्छियमणुग्गयत्थमियगहितमसढो" उ। कारणगहिउव्वरिते', भत्तादिविगिंचणे सुद्धो॥१७॥ 963. पढमाएँ पोरिसीए, पडिगाहेत्ताण असण-पाणादी। जो ततियमइक्कामे, कालातीतं इमं होति॥ 964. अद्धोयणा परेणं, आणित णीतं व' असण-पाणादी। एयऽद्धाणातीतं, सो सढ असढो वइक्कामो // 965. विगहा-किड्डादीहिं, होति सढो एस होति असढो तु। गेलण्णवावडत्ता', होज्ज व सागारिया तत्थ // 966. थंडिल्लअभावा वा, तेणाहिभयं व तत्थ होज्जाहि। एमादीकज्जेहिं, असढो तू होति णातव्वो॥ 967. एमादी असढो जं, विधी विगिचंतों होति सुद्धो तु। अणुदित अत्थमितो वा, गहितं असढेणिमं वोच्छं / 968. गिरि• राहु-मेह-महिया-पंसु-रयावरिय होज्ज वा सविता। उग्गयबुद्धी साहू, एमेव य होतऽणत्थमिते // 969. पच्छा णातमणुग्गत, अहव अत्थमित'' तु एस एण्हिं तु। एयण्णातम्मि सढो१२, सुद्धो तु विही विगिंचंतो॥ 970. आयरिए य गिलाणे, पाहुणगे खमग-बाल-वुड्डे य। एतेसऽट्ठा गहितं, तं होती कारणग्गहितं // 1. x (ला)। 2. उ (पा, ब, ला, मु)। 3. गहितुं (मु)। 4. कालाद्धा' (पा, ब, ला), "खाण अति° (ता)। 5. "रियं (ला)। 6. "गिंचियं (ला)। 7. व्व (पा, ब, ला)। 8. यह गाथा ता प्रति में नहीं है। 9. “ण्णं वाव (पा)। 10. गिरि (ला, पा)। 11. "मियं (ता, ब, ला)। 12. असढो (ब)।