________________ पाठ-संपादन-जी-१८-२० 109 971. विहिपरिभुत्तुव्वरितं, विधी विगिचंत होति सुद्धं तु। एतं विवेगदारं, एत्तो वोच्छामि वोसग्गं // 'गमणागमणविहारे, सुतम्मि सावज्जसुविणयादिसु' य।२ णावा-णदिसंतारे, पायच्छित्तं वियोसग्गो // 18 // 972. वसही गुरुमूला वा, गमणं' अण्णत्थ पुणरवागमणं। एतं गमणागमणं, विहार सज्झायभूमी तु॥ 973. तो सज्झायणिमित्तं, गमणं अन्नत्थ होज्ज साहुस्स। गमणागमणविहारं, णातव्वं होति एतं तु // 974. समितिविसुद्धिणिमित्तं, एत्थं पच्छित्त होति उस्सग्गो' / होति सुतं सुतणाणं, उद्देसगमादि णातव्वं // 975. पट्ठवणुद्दिसणे या, समुदिसणे तह य होतऽणुण्णाए। कालपडिक्कमणम्मि य, सुतस्स एत्थं तु उस्सग्गो / 976. पाणतिवायादीओ, सावज्जो सुमिणओ तु णातव्वो। _ आदीगहणेणं पुण, अणवज्जपसत्थएK पि॥ 977. चस्सद्दग्गहणाओ, दुस्सउणा दुण्णिमित्त' गहिता उ। पढमवयादीएसु य, सव्वेसु विसोहि उस्सग्गो॥ 978. णावा चउव्विहा तू, समुद्दणाविक्क तिण्णि उ णदीए। उज्जाणी ओयाणी, तिरिच्छगामी भवे तइया // 979. जंघद्धा संघट्टो, णाभीलेवोवरिं तु लेवुवरिं / बाहोडुपाइओ खलु, णदिसंतारेवमादीओ // 1. 'सुमिणयाई (ला)। 2. "वियारे सुत्ते वा सुमिण-दंसणे राओ (व्य 110), च सद्देण दुन्निमित्त दुस्सउण-पडिहणणनिमित्तं (चू)। 3. विउस्सग्गो (व्य)। 4. गमण (पा)। 5. उवसग्गो (ता, ब, ला, पा)। 6. आदिग्ग' (मु)। 7. दुणिमित्त (ता)। 8. नि (183) में इस गाथा की संवादी निम्न गाथा मिलती हैणावातारिम चतुरो, एग समुद्दम्मि तिण्णि य जलम्मि। ओयाणे उज्जाणे, तिरिच्छ संपातिमे चेव // 9. “लेवो परेण (ओभा)। 10. ओभा (34) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार हैएगो जले थलेगो, निप्पगले तीरमुस्सग्गो।