________________ 28 जीतकल्प सभाष्य अन्तर्गत और भी अनेक प्रमादों के वर्णन है, जैसे-उपधि गिरने पर, प्रतिलेखना विस्मृत होने पर तथा आचार्य को निवेदन न करने पर क्रमशः निर्विगय, पुरिमार्ध और एकासन प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार गुरु की आज्ञा के बिना स्थापना कुल में प्रवेश और निर्गमन करने पर तथा शक्ति होते हुए भी वीर्य का गोपन करने पर एकासन तप की प्राप्ति होती है। ____ तप प्रायश्चित्त के प्रसंग में ग्रंथकार ने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पुरुष के आधार पर किस प्रकार सापेक्ष प्रायश्चित्त देना चाहिए, इसका विस्तार से वर्णन किया है। जहां आहार आदि सुलभ हों, वहां अधिक प्रायश्चित्त भी दिया जा सकता है तथा जहां सामान्य धान्य भी दुर्लभ हो, वहां कम प्रायश्चित्त भी दिया जाता है। पुरुष के आधार पर भिक्षु गीतार्थ है अथवा अगीतार्थ, सहनशील है अथवा असहनशील, शठ है अथवा अशठ, परिणामी है अथवा अपरिणामी, धृतिसंहनन से युक्त है अथवा धृतिसंहनन से रहित तथा आत्मतर, परतर, उभयतर, नोभयतर, अन्यतर आदि पुरुषों का भी वर्णन मिलता है। धृति-संहनन से युक्त को अधिक तथा इससे हीन को कम प्रायश्चित्त दिया जाता है। भाष्यकार ने छह कल्पस्थिति, आचेलक्य आदि दस प्रकार के कल्पों का भी विस्तार से वर्णन किया है। तप प्रायश्चित्त के अन्तर्गत ग्रंथकार ने भंगों के माध्यम से जीतयंत्र का विस्तृत वर्णन किया है। सम्पूर्ण तप प्रायश्चित्त लगभग 1281 गाथाओं में सम्पन्न हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि आधा ग्रंथ तप प्रायश्चित्त से सम्बन्धित है। तप प्रायश्चित्त के पश्चात् छेद और मूल प्रायश्चित्त के अपराध-स्थानों का वर्णन है। अनवस्थाप्य के दो प्रकार हैं-आशातना और प्रतिसेवना। भाष्यकार ने आशातना के छह स्थानों का सुंदर वर्णन किया है तथा प्रतिसेवना अनवस्थाप्य के साधर्मिक स्तैन्य, अन्यधार्मिक स्तैन्य आदि का विशद विवेचन हुआ है। यह सारा वर्णन उस समय की साधु संस्कृति का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। पाराञ्चित प्रायश्चित्त-प्राप्ति के कारण बताते हुए भाष्यकार कहते हैं कि अनवस्थाप्य की भांति तीर्थंकर, प्रवचन, श्रुत और आचार्य आदि की आशातना करने वाला पाराञ्चित प्रायश्चित्त प्राप्त करता है, साथ ही दुष्ट, प्रमत्त और अन्योन्य प्रतिसेवना (गुदा सेवन) करने वाला पाराञ्चित प्रायश्चित्त का भागी होता है। ग्रंथ के अंत में भाष्यकार ने इस ग्रंथ के अध्ययन हेतु पात्र और अपात्र की चर्चा प्रस्तुत की है। सम्पूर्ण ग्रंथ अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों को अपने भीतर समेटे हुए है। ग्रंथ वैशिष्ट्य प्रायः भाष्य मूल सूत्र और उसकी नियुक्ति पर व्याख्या रूप में लिखे गए हैं। जीतकल्प सूत्र पर कोई नियुक्ति नहीं लिखी गई इसलिए जीतकल्प भाष्य ही एक मात्र ऐसा ग्रंथ है, जो केवल उसके सूत्र की