________________ पाठ-संपादन-जी-९ 97 845. चिंतेति किं करेमी, कह णु समाधी हवेज्ज साहुस्स?। इय बहुविधप्पगारं, ण वि तिण्णो जाहें खोभेउं // 846. ताहे अभित्थुणित्ता,गतो तओ आगतो य इतरो वि। ___ आलोएति गुरूहि य, धण्णो' त्ति ततो समणुसट्ठो॥ 847. जह तेणं ण वि पेल्लिय, एसण इय एव साहुणा निच्चं। जइयव्वं एमेसा, एसणसमिती समक्खाता॥ 848. पुट्विं चक्खु परिक्खिय, पमज्जितुं जो' ठवेति गिण्हति वा। आदाणभंडनिक्खेवणाएँ सो होति इह समितो॥ .849. एत्थ वि ते च्चिय भंगा, कातव्वा जाव होति अंतिमतो। सुप्पडिलेहित-सुपमज्जितं च भंगो चउत्थो उ॥ 850. एसो गज्झो एत्थं, तम्मुवयुत्तो स होति खलु समितो। आहरण गुरुण भणितो, साहू वच्चामु गामं ति // 851. ओगाहिते' पडिग्गह, ताहें ठिता कारणेण केणावि। तत्थेगो पेहेळं, णिक्खिवती' बितिओं पुण आह // 852. पेहितमेतं किं पेहणा, पुणो ? होज्ज एत्थ किं सप्पो?। सण्णिहितदेवताए, विउव्वितो तत्थ तो सप्पो॥ 853. उग्घाडिते य दिट्ठो, आउट्टो बेति मिच्छकारं च। समिताऽसमिता एते, उक्कोस-जहण्णगा होंति॥ 854. उच्चारं पासवणं, खेलादि व अण्णपाणमहितं च / सुविवेइए पदेसे, णिसिरंतो होति इह समितो // 855. एत्थ वि ते च्चिय भंगा', तहेव समितो तु अंतिमे होति / आहरणं धम्मरुई०, परिठावणसमितिमुज्जुत्तो५ // 1. धण्णु (ता)। 2. x (ब)। 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 27 / 4. उग्गा (ब)। ५.णिक्खिविई (ता)। ६.बितीओ (ता, पा, ला)। 7. x (ता)। 8. वा (मु, ता)। 9. भंगो (ता, पा)। 10. रुती (पा, ब, मु)। 11. "ट्ठावण (पा, ला)।