________________ जीतकल्प सभाष्य 18 856. काइयऽसमाहि परिट्ठावणे य गहितो अभिग्गहो तेणं। . सक्कपसंसा अस्सद्दहणा' देवागम विउव्वे // 857. सुबहू पिपीलियाओ, बाहाडा यावि काइयऽसमाही। अण्णो य काइयाए, उवट्ठितो बेतऽहं असहू॥ 858. अहयं तु काइयाडो, बेति परिठ्ठव समाहि मा अच्छ। णिग्गत णिसिरे जहिँ जहिँ, पिवीलिया ऊ सरे तत्थ // अह साहु किलामिज्जति, ताहे पीतो य धरितों देवेणं। सो मा य णिसिद्धो त्ती, मा पिय देवो य आउट्टो॥ 860. वंदित्तु गतो देवो, समितीसू एव होति जतितव्वं / एत पसंगाभिहितं, 'आसातण इणमु वोच्छामि" // 861. गुरवो आयरिया तू, णाणादीओ उ होति आयारो। आयरण परूवणया, वट्टति सो तेसिमाऽऽसाणा // 862. तीय विभासा इणमो, आसातण दुपद वयणमेव त्ति। आयाय सातयाणा, आयस्स उ साडणा जा उ॥ 863. सा होती आसातण, आओ लाभो त्ति आगमो यावि। णाणादीणं साया', सायण धंसो विणासो ति॥ 864. आतस्स 'साडणं ती", यकारलोवम्मि होति आसयणा। आयरियाणं इणमा, आसायण' होतिमेहिं तु॥ 865. डहरो अकुलीणो 'त्ति य१०, दुम्मेहो दमग मंदबुद्धि त्ति। अवि अप्पलाभलद्धी, सीसो परिभवति आयरियं // 866. अहवा वि वदे एवं, उवदेस परस्स देंति एवं तु। दसविधवेयावच्चं, कातव्व सयं ण कुव्वंति॥ 1. असद्द (ला)। 7. “डम्मी (ता)। 2. पवीतो (ता, ब)। 8. इणमो (पा, मु)। 3. मा (मु), सा (पा)। 9. आसायणा (पा)। 4. x (ता), कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२,कथा सं.२८। १०.त्ती (पा, ब, ता)। 5. ता प्रति में यह गाथा नहीं है। 11. बृ 772, नि 2760 / 6. सोया (पा, ब, ला)।