________________ जीतकल्प सभाष्य महिन 765. असिवे ओमोदरिए, रायढुढे भए व गेलण्णे। अहवा वि उत्तमढे, समाधिकामो तु गच्छेज्जा॥ 766. आयरियपेसणादी, विणिग्गमो' गच्छओ व होज्जाहि। कारण णिग्गम एसो, निक्कारणओ इमं वोच्छं // 767. चक्के थूभे पडिमा, जम्मण-णिक्खमण-णाण-णिव्वाणे / महिम समोसरणे वा, सण्णातग-वइयमादिसु वा // 768. असमत्तकप्पियाणं, णिक्कारण णिग्गमा भवे एते। एते च्चिय कारणतो, जतणाजुत्तस्स गीतस्स // .. 769. कारणविणिग्गतेणं, णिरतीयारेण वी अवस्सं तु। आलोयण दातव्वा, समितिविसुद्धीणिमित्तं तु॥ 770. सा आलोयण दुविधा, ओहेण विभागतो य णातव्वा। ओहो संखेवो ऊ, विभाग पुण वित्थरो भणितो // 771. ओहो तत्थ इमो खलु, अब्भंतरअद्धमासआयस्स। पडिकंतस्स य इरियं, साहुसमुद्दिसणवेला तु॥ 772. णिरतीयारो ‘य जती', भत्तट्ठी वि य हवेज्ज जदि सो तु। ओहेण तत्थ आलोइऊण तो मंडलिं पविसे // 773. अप्पा मूलगुणेसुं, 'विराधणा अप्प उत्तरगुणेसुं"। __ अप्पा' पासत्थादिसु, दाणग्गहणं तु आहेसा // 774. अण्णाय उ वेलाए, विभागआलोयणा तु दातव्वा। समितिविसुद्धिणिमित्तं, एमेव य पक्खपरओ वि // 775. एवं ता कारणिए, असिवादीणिग्गतस्स सगणातो। अतियारविरहियस्स वि, आलोयणमेत्तओ सुद्धी॥ १.णिग्गमो (पा, ला), उ णिग्गमो (ब)। 2. ओनि (119) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है- संखडि विहार आहार-उवहि तह दंसणट्ठाए। 3. जयई (ता)। 4. उत्तरगुणतो विराधणा अप्पा (व्य 238) / 5. अप्पं (ब)। 6. दाणगहसंपयोगोहा (व्य, नि 6316) / 7. "तिसुद्धि (ता)। 8. "परया (पा, ला)।