________________ पाठ-संपादन-जी-९ जे बहियाऽऽगत साहू, ते दुविधा होंति तू मुणेतव्वा। 'समणुण्णऽमणुण्णा" वा, समणुण्ण सगच्छतो चेव॥ 777. परगणे जे अमणुण्णा, ते दुविहा होंति तू मुणेतव्वा। संविग्गमसंविग्गा, पासत्थादी असंविग्गा // 778. परगण संविग्गाओ, जो साधू आगतो तु अण्णगणं / तेण अवस्साऽऽलोयण, विभागतो होति दातव्वा / / 779. उवसंपद पंचविधा, सुत सुह दुक्खे य खेत्त मग्गे य। विणयोवसंपदा वि य, पंचमिगा' होति नातव्वा // 780. पंचविहाए नियमा, एगविहाए व जत्थ उवसंपे। निरतीयारेण ठिता', विभागतोऽवस्स दातव्वा // 781. विहरेंति एगसंभोइगा उ फड्डावती उ गीतत्था। तत्थऽण्णत्थ व खेत्ते, समणुण्णा एस गच्छम्मि॥ 782. एगाह पणग पक्खे, चउमासे वावि जत्थ व मिलंति / ___ तत्थ विभागालोयण, अवरोप्पर तेहि दातव्वा // 783. आलोयणारिहं ति इ, पढमं दारमेतं समक्खातं / पडिकमणारिहमेत्तो, बितियं दारं इमं वोच्छं / गुत्ती-समितिपमादे, गुरुणो आसायणा विणयभंगे। इच्छादीणमकरणे, लहुस मुसादिण्णमुच्छासु॥९॥ 784. गुपु रक्खणम्मि गुत्ती, ताणि मणादीणि होति तिण्णेव। तेहि कहिंचि पमादं, साहु करेज्जा इमं तं च॥ 785. दुच्चिंतिय दुब्भासिय, दुच्चेट्ठिय एसऽगुत्तिया होति। मणमादीणं कमसो, एस पमादो उ साधुस्स // 786. गुत्तो होति कहण्णू, मणमादीहिं तु साहुणा निच्चं / तत्थोदाहरणे तू, जिणदासादी इमे वोच्छं / 1. "णुण्णसमणुण्णा (ला)। 2. पंचविहा (ब)। 3. वि य (पा, ला)। 4. वि (मु, पा)। 5. मलंति (ता, ला, पा)। 6. पमत्तो (मु, पा)।