________________ जीतकल्प सभाष्य 744. एतेसिं अट्ठाए, गुरु पुच्छित्ता गुरूणऽणुण्णातो। . सुत्ताणुसारतो तू, उवयुत्तों विधीय घेत्तूणं // 745. आलोएती गुरुणो, जं जह गहितं तु भत्तमादीयं / सुत्ताणुसारतो तू, आलोयणमेत्तयो सुद्धो॥ 746. सीसाऽऽह जई एवं, विधिगहणं होति एवऽसुद्धं तु। तो गहणमेव' सव्वे, आहारादीण मा कुणउ // 747. चोदग! जदि एवं तू, संजमजोगा उ होंति संपुण्णा। आहारमादियाणं, को नाम परिग्गहं कुज्जा? // 748. अण्णं च इमो दोसो, अग्गहणा पावती महंतो उ। आयरियादी चत्ता, णाणादीणं च वोच्छेदो // 749. तम्हा अवस्सगहणं, आहारादीण होति विहिणा उ। आहारांदीगहणे, एगो पादो समत्तेसो॥ 750. निग्गम गुरुमूलाओ, सेज्जाओ 'वा हवेज्ज'२ निग्गमणं / ते य अणेगा निग्गम, कुलादिया इणमु वोच्छामि // 751. कुल-गण-संघे चेइय, तद्दव्वविणासणे दुविधभेदे / एतेसि णिवारणया, गुरुमूल करेज्ज णिग्गमणं / 752. संथारादीणऽहवा, अप्पिणणत्था उ पाडिहारीणं। निग्गम गुरुमूलाओ, वसहीओ वा करेज्जाहि // 753. गाहापच्छद्धेणं, जं भणितुच्चार अवणिसद्दो तु। अवणी भूमी भण्णति, तेण उ उच्चारभूमी उ॥ 754. सज्झायविहारो तू, अवणीसहितो विहारभूमी उ। चेइयवंदणहेतुं, गच्छे आसण्ण दूरं वा // 755. आयरिया तु अपुव्वा, अहवा साधू अतीव संविग्गा। वंदण-संसयहेउं, गच्छे आसन्न दूरं वा॥ 1. गहणं एव (ला)। 2. वाअग (ला, ब)। 3.4 (ला)। ४.व (पा)। 5. दूरे (ला)।