________________ जीतकल्प सभाष्य 702. दव्वं खेत्तं कालं, भावं पुरिस पडिसेवणाओ य। धिति-बल-संघयणं वा, आवेक्खति जीतकप्पो उ' // 703. एस पसंगाभिहितो, चोदगवयणाउ अहुण जीवस्स। वोच्छामि सोधणं तू, परमं सुसमाहितो एण्हि // 704. जीव त्ति पाणधरणे, पाणा पुण आउमादि णिद्दिट्ठा। अहवा जीवति जीविस्सई य जीवं ति होति जिओ॥ 705. होति विसोहण सोहण, जह तू वत्थस्स तोयमादीहिं। तह कम्ममलखउरल्लियस्सा जीवस्स पच्छित्तं // 706. एयं पुण पच्छित्तं, परम पहाणं ति होति एगटुं। कस्सेयं परमं? ती, जीवस्स उ होति पच्छित्तं / / संवर-विणिज्जराओ, मोक्खस्स पहो तवो पहो तासिं। तवसो य पहाणंगं, पच्छित्तं जं च णाणस्स॥२॥ 707. संवर घट्टण पिहणं, एगटुं सो य संवरो दुविधो। देसे सव्वे य तहा, एमेव य निज्जरा दुविहा॥ 708. संवरियासवदारो, नवकम्मोवज्जणं ण कुव्वति उ। पुव्वज्जितस्स खवणं, विणिज्जरा सा उ णातव्वा // 709. सेलेसिं पडिवण्णे, दुचरिमसमयम्मि वट्टमाणे य। तहिँ सव्वसंवरा णिज्जरा य अवसेसदेसम्मि॥ 710. संवर-विणिज्जराओ, उभयमवी मोक्खकारणं होति। मोक्खपहो हेतू कारणं ति एते उ एगट्ठा / 711. एतेसिं दोण्ह वि तू, तवो पहो हेउ कारणं होति। एतस्स वि पच्छित्तं, पहाणमंगं मुणेतव्वं // 712. जेण तवो बारसहा, पच्छित्ते णिवतती तु दसभेदे / तेण पहाणं अंगं, तवस्स तू होति पच्छित्तं // 1. इस गाथा से पूर्व प्रतियों में 'अण्णं च' का उल्लेख है। 2. जिवं (मु, पा, ब)। 3. हणा (म)। 4. क्खउरल्लियस्स (मु, ब, ला)।