________________ पाठ-संपादन-जी-२-५ 713. गाहापच्छद्धेणं, तस्स वि जं भणित जं च णाणस्स। णंतर ततिगाहाए, सारं तू तं चिमं आह॥ सारो चरणं तस्सा', णिव्वाणं चरणसाहणत्थं च। पच्छित्तं तेण तयं, णेयं मोक्खत्थिणा ऽवस्सं॥३॥ 714. सामाइयमादीयं, सुतणाणं बिंदुसारपज्जतं / तस्स वि सारो चरणं, 'चरणस्स वि होति णेव्वाणं" / 715. जेव्वाणस्स अणंतर, चरणं चरणा अणंतरं णाणं / णाणविसुद्धीए पुण, चारित्तविसुद्धया होति // 716. चारित्तविसुद्धीए, णेव्वाणफलं तु पावती अचिरा। सा पुण चरित्तसुद्धी, पच्छित्ताहीण णातव्वा // 717. जम्हा एतेऽत्थ गुणा, पच्छित्ते वण्णिता तु सुत्तम्मि। तम्हा खलु णातव्वं, दसहा मोक्खत्थिणा जहिमं // तं दसविहमालोयण-पडिकमणोभय-विवेग-वोसग्गे। तव-छेद-मूल-अणवठ्ठया य पारंचिए चेव॥४॥ 718. आलोयणअरिहं ती, आ मज्जायाऽऽलोयणा गुरुसगासे / जं पाव विगडिएणं, सुज्झति पच्छित्त पढमेयं // 719. मिच्छादुक्कडमेत्तेण, चेव जं सुज्झती तु पावं तु / ण य विगडिज्जति गुरुणो, पडिकमणरिहं हवति एयं // 720. जह तु अणाभोगेणं, खेलादी णिसिरितं तु होज्जाहि। हिंसादिए य दोसे, ण य आवण्णो तु किंचिदवि // 721. जं पाव सेवितूणं, गुरुणो विगडिज्जती उ सम्मं तु / गुरुसंदिट्ठ पडिक्कम, तदुभयमेतं मुणेतव्वं // 1. तस्स (पा, ब), तस्स वि (ला)। 2. सव्वं (ब)। 3. जाव बिंदुसाराओ (आवनि 87) / 4. सारो चरणस्स णिव्वाणं (आवनि)। . 5. वोसग्गा (पा)। 6. मुद्रित पुस्तक तथा कुछ प्रतियों में 'आ' पाठ मिलता है लेकिन छंद की दृष्टि से यह अतिरिक्त पाठ प्रतीत होता है। 7. “समासे (पा, मु)।