________________ पाठ-संपादन-जी-१ 79 651. लिंगादी जोगत्थे, जहण्ण उक्कोसओ व बोधव्वो' / उक्कोस जहण्णो वा, विहरउ सो अब्बितीओ उ॥ 652. बितियस्स य कज्जस्सा, तहियं चउवीसगं वियाणेत्ता। णवकारेणाउत्ता, हवंतु एवं भणेज्जासि // 653. एवं गंतूण तहिं, जहोवदेसेण देहि पच्छित्तं / आणाए ‘ववहारो, भणितेसो५ धीरपुरिसेहिं / / 654. एसाऽऽणाववहारो, जहोवदेसं जहक्कम भणितो। धारणववहारं पुण, सुण वच्छ! जहक्कम वोच्छं / उद्धारणा विहारण', संधारण संपहारणा चेव। धारणववहारस्स उ, नामा एगट्ठिता एते॥ 656. पाबल्लेण उवेच्च उ, उद्धितपदधारणा व उद्धारो। विविहेहि पगारेहिं, धारेतऽत्थं विधारो तु॥ 657. सं एगीभावम्मी, धी धरणे ताणि एक्क० भावेणं / तिधारेतऽत्थपदाणि तु, तम्हा संधारणा होति // 658. जम्हा संपहारेउं, ववहारं पशुंजती। तम्हा कारणा२ तेण, णातव्वा संपधारणा // .659. धारणववहारेसो, पउंजितव्वो तु केरिसे पुरिसे? / भण्णति गुणसंपण्णे, जारिसगे तं सुणेह त्ति। 660. पवयणजसंसि पुरिसे, अणुग्गहविसारदे तवस्सिम्मि। सुस्सुयबहुस्सुतम्मि य, विवक्कपरियागबुद्धिम्मि॥ १.व्य (पा, ला)। 2. 'व्वा (ला)। 3. सतिं (व्य 4500) / 4. देति (व्य)। 5. एस भणितो ववहारो (व्य 4501) / ६.व्य 4502 / 7. रणं (ला)। 8. ष्य (व्य 4503) में गाथा का टसरार्ध इस प्रकार है नाऊण धीरपुरिसा, धारणववहार तं बेति। 9. उ (व्य 4504, मु)। 10. एव (मु, पा)। ११.व्य 4505 / 12. कारणे (मु, ब)। 13. गाथा 658 से 662 तक की गाथाओं की तुलना हेतु देखें व्य 4506-10 /