________________ पाठ-संपादन-जी-१ 77 631. एवं दप्पपदम्मी, दप्पेणं चारिया उ अट्ठरस'। एवमकप्पादीसु वि, एक्केक्के होंति अट्ठरस // 632. बितियं कज्जं कप्पो', पढमपदं तत्थ दंसणणिमित्तं / पढमं छक्क वताई, तत्थ वि पढमं तु पाणवहो॥ 'दसण अणुम्मुयंतो", पुव्वकमेणं तु चारणीयाई। अट्ठारसठाणाई, एवं णाणादि एक्केक्के / 634. 'चउवीसऽट्ठारसगा"५, एवं एते हवंति कप्पम्मि। दस होति अकप्पम्मी, सव्वसमासेण मुण संखं // 635. दप्पेणाऽसीतसतं, गाहाणं कप्पें होंति चत्तारि। बत्तीसाऽऽयातेते, छस्सय होती तु बारस य॥ 636. सोतूण तस्स पडिसेवणं तु आलोयणं कमविधिं तु। आगम-पुरिसज्जातं, परियाग-बलं च खेत्तं च // 637. अह सो गतो सदेसं, संतस्साऽऽलोइयल्लयं सव्वं / आयरियाण कहेती, परियाग बलं च खेत्तं च // 638. सो ववहारविहिण्णू, अणुमज्जित्ता२ सुतोवदेसेणं / सीसस्स देति'३ आणं, तस्स इमं देह" पच्छित्तं // 639. पढमस्स य कज्जस्सा, दसविधमालोयणं णिसामेत्ता। ___णक्खत्ते 'पीला भे'१५, सुक्के पणगं तवं कुणह // १.व्य (4483) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है- निक्कारणदप्पेणं, अट्ठारसचारियाइ एताई। 2. मट्ठ (मु, ला)। 3. कारण (व्य 4484) / 4. णमणुमुयंतेण (व्य 4485) / 5. स अट्ठा (मु, पा, ब)। ६.कप्पंति (ब)। ७.व्य 4486 / 8. गाथाओं के क्रम में व्य में यह गाथा नहीं है। ९.व (व्य 4487) / १०.वा (ला)। 11. गा. 637 के स्थान पर व्य (4488) में निम्न गाथा मिलती है आराहेउं सव्वं, सो गंतृणं पुणो गुरुसगासं। तेसि निवेदेति तधा,जधाणपव्विं गतं सव्वं // 12. अणुस (मु)। 13. देहि (ला, पा)। 14. देहि (व्य 4489) / 15. भे पीला (व्य) सर्वत्र / 16. गा. 639 से 648 तक की गाथाएं व्य में कुछ अंतर के साथ मिलती हैं। द्र. व्य 4490-96 /