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________________ जीतकल्प सभाष्य 620. पढमस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। बितिए छक्के अन्भिंतरं तु पढमं भवे ठाणं॥ 621. पढमस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। बितिए छक्के अभिंतरं तु इय जाव तसकायं // . पढमस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। ततिए छक्के अभिंतरं तु पढमं भवे टाणं॥ 623. पढमस्स या कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। ततिए छक्के अभिंतरं तु इय जाव तु विभूसा॥ 624. पढमममुंचंतेणं, बितियादीए तु जाव दसमं तु। पढमच्छक्कादीसु उ, पुणो पुणो चारणिज्जाई // 625. दप्पियसेवाए तू, दप्पेणं चारियाणि अट्ठरस / दस अट्ठारसगुणिता, आसीतसतं तु गाहाणं॥ 626. एवं बीतिजस्स वि, कज्जस्सा गाह होति छच्चेव। सव्वाओ गाहाओ, चत्तारि सता तु बत्तीसा॥ 627. बितियस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। पढमे छक्के अभिंतरं तु पढमं भवे ठाणं // 628. एवं बितियस्सा वि हु, कज्जस्सा एय चेव गाहाओ। बितियगअभिलावेणं, सव्वाओ भाणियव्वाओ // 629. पढमं ठाणं दप्पो, दप्पो च्चिय तस्स वी भवे पढमं। पढमं छक्क वताई, पाणतिवाओ तहिं पढम // 630. एवं तु मुसावाओ, अदत्त मेहुण परिग्गहे चेव। बितिछक्के पुढवादी, ततिछक्के होतऽकप्पादी॥ 1. अब्भंतरं (ब)। 2. तमक्खायं (ब)। 3.4 (ब)। ४.व्य 4475 / 5. स्स (पा, ब)। 6.4 (पा, ला)। 7. गा.६२९ के स्थान पर व्य (4481) में कुछ अंतर के साथ निम्न गाथा मिलती हैपढम कज्ज नामं, निक्कारणदप्पतो पढमं पदं। पढमे छक्के पढमं पाणइवाओ मुणेयव्यो॥ 8. अदिन्न (व्य 4482) /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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