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________________ पाठ-संपादन-जी-१ 610. 'वच्छल्ल असियमुंडो", नित्थारिओं जह तु अज्जवइरेहिं / कुल-गण-संघे अभिचारुगादि रायाइणं कुज्जा // 611. आयरिय-असहु-अतरा, बाले वुड्डे य जेण तु समाही। तं जायिऊण देंती, पणगादीहिं तु जतणाए / 612. निवदिक्खितादि असहू, बालो वइरो व्व दिक्खितो कज्जे। वुड्डो वी कज्जम्मी, जह दिक्खितों रक्खितज्जेहिं // 613. उदय-ऽग्गि-चोर-सावय-भएसु थंभणि पलाण रुक्खे वा। कंतारें पलंबादी, 'दव्वादी आवई' चउहा'६ // 614. कोई तु वियडवसणी, गोज्जादी वावि होज्ज णिक्खंतो। जतणाएँ वियडगहणं, गाएज्ज व गीतवसणी तु // 615. एयण्णतरागाढे, सदसणे णाण-चरणसालंबो। पडिसेवितुं कदाई, होति समत्थो पसत्थेसु॥ 616. एसा कप्पियसेवा, चउवीसविधा समासतो कहिता। अहुणा उ चारणा तू, इणमो वोच्छं समासेणं // 617. ठावेत्तु० दप्प-कप्पे, हेट्ठा * दप्पस्स दसपदे ठावे। कप्पाधो चउवीसति, तेसिमह ऽट्ठारसपदार उ॥ .. 618. पढमस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। पढमे छक्के अभिंतरं तु पढमं भवे ठाणं२ // ____619. पढमस्स य कज्जस्सा, पढमेण पदेण सेवितं होज्जा। पढमे छक्के अभिंतर३ तु इय जाव णिसिभत्तं // 1. ल्ले असिमुंडो (पा, ब)। ____2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 17 / 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 18,19 / 4. तेण (नि)। 5. आवई (ला), आवइ (पा)। 6. वसणं पुण वाइ गीतादी (नि 492) / 7. कोइं (पा, ब, ला)। 8. पसत्थो (पा, ब, ला)। ९.व्य 4466, नि 493 / 10. ठावेउ (व्य 4467) / 11. अट्ठार' (मु, ला)। 12.618 से 623 तक की गाथाएं व्य (4468-74) में मिलती हैं लेकिन वहां प्राय: गाथाओं के चौथे चरण में पाठभेद है। 13. अब्भंतरं (ला) सर्वत्र। 14. गा.६१९ से 623 तक की पांच गाथाओं का पा प्रति में संकेत मात्र है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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