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________________ 74 जीतकल्प संभाष्य 601. दंसण-णाण-चरित्ते, तव-पवयण-समिति-गुत्तिहेतुं वा। साहम्मियवच्छल्लेण वावि कुलतो गणस्सेव' // 602. संघस्साऽऽयरियस्स य, असहुस्स गिलाण-बाल-वुड्डस्स। उदयऽग्गि चोर सावय, भय कंताराऽऽवई वसणे // 603. दंसणपभावगाणं, 'सत्थाणऽट्ठाएँ'३ सेवती जं तु। णाणे सुत्त-उत्थाणं, 'असंथरासेवणे सुद्धो" // 604. चरणे एसणदोसा, इत्थीदोसा य जत्थ खेत्तम्मि। तत्तो - विणिक्खमंतो, जं सेवाऽसंथरे सुद्धो॥ 605. नेहादि तवं काहं, कते विगिट्टे वि लागतरणादी। अभिवायणा पवयणे, विण्हुस्स विउव्वणा चेव // 606. इरियं ण सोहइस्सं, चक्खुणिमित्तकिरिया तु रीयाए। खित्तादि बीय ततिया, 'अहवा वि इमं तु तइयाए / 607. 'अद्धाणकप्पऽणेसी', अण्णं वऽसिवादिकारणेहिं तु। संकियमादी गिण्हे, जतणाए तत्थ सुद्धो तु२॥ 608. आदाणे चलहत्थो, पमज्जमाणेहिं अण्णहिं जाति। अहवा वि तस्स अट्ठा, ओसह किंची करेज्जाहि // 609. पंचमिएँ काइभूमादि बंधमाणे उ आरभे किंचि। विगडादि मणअगुत्ते, * वइ-काए खित्त-दित्तादी॥ 1. व्य 4464, नि 484 / 8. नि 487, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा 2. व्य 4465, नि 485 / सं.१६। 3. सट्ठाण (नि)। 9. इरियाए (नि)। 4. सेवए (ब)। 10. कप्पेण वऽणेसि संकाए (नि 488) / ५.नि (486) में गाथा के चौथे चरण में गा. 604 का 11. कप्पाणेसी (पा, ला)। संक्षिप्त पाठ है-चरणेसण इत्थिदोसा वा। वहां 604 १२.नि में गाथाओं के क्रम में यह गाथा अप्राप्त है। इसका गाथा नहीं है, गाथाओं के क्रम में व्य में 603 से 613 संक्षेपार्थ गा.६०६ के चौथे चरण में दे दिया गया है। तक की गाथाएं नहीं मिलती हैं। १३.नि (489) में गा.६०८ और 609 के स्थान पर निम्न ६.विगटे (पा, ला)। गाथा है७. लाया णाम वीहिया तिमिउं भट्ठे भुज्जित्ता ताण तंदुलेसु आदाणे चलहत्थो, पंचमिए कादि वच्चभोमादि। पेज्जा कज्जति, तं लायतरणं भण्णति (निचू 1 पृ.१६२)। विगडाइ मणअगुत्ते, वइ काए खित्तदित्तादी॥
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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