________________ पाठ-संपादन-जी-१ 549. दो सोत-णेत्तमादिग', णवंगसोता हवंति 'एते तु"। 'देसीभासऽट्ठारस", रतीविसेसा उ इगुवीस // 550. कोसल्लगेगवीसतिविधं तु एमादिएहि तु गुणेहिं / जुत्ताए रूव-जोव्वण-विलास-लावण्णकलियाए / 551. चउकण्णम्मि रहस्से, रागेणं रायदिण्णपसराए। तिमि-मगरेहि व उदधी, ण खोभितो जो मणो मुणिणों // 552. जाहे पराइया सा, ण समत्था सीलखंडणं. काउं। णेऊण सेलसिहरं, तो 'सिलमुवरि मुयति तस्स" // '553. एगंतणिज्जरा से, दुविधा आराधणा धुवा तस्स। अंतकिरियं व साधू, करेज्ज देवोववत्तिं वा // 554. एमादीहि बहुविधं, दुविधं तिविहेहि ते महाभागा। घोरेहि उवसग्गेहिं, चालिज्जंता वि णिद्दयया। 555. पुव्वा-ऽवर-दाहिण-उत्तरेहि२ वातेहि आवयंतेहिं / जह ण वि कंपति मेरू, 'तह ते४ झाणाउ न चलिंति५ // 556. पढमम्मि य संघयणे, वटुंता सेल-कुड्डसामाणा। तेसिं पि य वोच्छेदो, चउदसपुव्वीण६ वोच्छेदे // . 557. एतं८ पादोवगम, णिप्पडिकम्मं 'जिणेहि पण्णत्तं 19 / तित्थगर-गणहरेहि य, साधूहि य सेवितमुदारं // 1. मादी (व्य 4412) / 2. एतेसु (मु, पा)। 3. अठारस (मु, ला)। 4. उगु (ब), इगवीसं (व्य), गा.५४९ और 550 के स्थान पर नि (3960) में निम्न गाथा हैसोआती णवसोत्ता, अट्ठारस होति देसभासाओ। इगतीस रइविसेसा, कोसल्लं एक्कवीसतिहा॥ 5. लायण्ण' (मु, पा, ब), व्य 4413 / 6. कण्णंसि (व्य 4414) / .७.नि 3961 / ८.सीलक्खं (ला)। ' ९.से सिलं मुंचते उवरिं (व्य ४४१५,नि 3962) / 10. ववायं (नि)। 11. व्य 4405, 4416, नि 3952, 3963 / 12. उत्तरहिं (पा, ला)। 13. आवडतेहिं (प्रकी 1282) / 14. ते तह (ला)। 15. व्य 4400, नि 3947 / 16. चोद्दस (ला, व्य 4401, नि 3948) / 17. प्रकी 1283 / 18. एवं (व्य, नि, ब)। 19. तु वण्णितं सुत्ते (व्य 4429) / २०.नि 3976 /