________________ जीतकल्प सभाष्य 539. बावीस आणुपुव्वी', तिरिक्ख मणुया व भंसणत्थाए। विसयाणुकंपरक्खण, करेज देवा व मणुया वा॥ 540. जह णाम असी कोसी', 'अण्णा कोसी' असी वि खलु अण्णो"। इय मे 'अण्णो देहो, अण्णो जीवो त्ति मण्णंति" || 541. एगंतणिज्जरा से, दुविहा आराधणा धुवा तस्स। अंतकिरियं च साधू, करेज्ज देवोववत्तिं वा / / 542. एवं धिति-बलजुत्तो, अहियासेति पडिलोमउवसग्गे। एत्तो पुण अणुलोमे, जह सहती ते तहा वोच्छं / 543. सक्कारं सम्माणं, हाणादीयाणि तत्थ कुज्जाहि। वोसट्ठ-चत्तदेहो, अहाउगं कोइ पालेज्जा // पुव्वभवियपेमेणं, देवो 'देवकुरु-उत्तरकुरासु" / कोई हु साहरेज्जा, सव्वसुहा जत्थ अणुभावा / पुव्वभवियपेमेणं, देवो साहरति नागभवणम्मि। जहियं इट्ठा कंता, सव्वसुहा होति अणुभावा // 546. बत्तीसलक्खणधरो, पादोवगतो य पागडसरीरो। पुरिसव्वेसिणिकण्णा", रायविदिण्णा२ तु गिण्हेज्जा // 547. मज्जण-गंधं पुष्फोवकारपरियारणं 'च कुज्जाहिं। सा पवररायकण्णा, इमेहि जुत्ता गुणगणेहिं" / / 548. नवयंगसोतबोहिय५, अट्ठारसरतिविसेसकुसला तु। चोयट्ठीमहिलगुणा, णिउणा य बिसत्तरिकलाहिं // 544. 1. माणु' (व्य 4427), माणुपुट्विं (नि 3974) / 2. कोसे (व्य 4399) / 3. कोसो (प्रकी 1281), सर्वत्र / 4. असी वि कोसी वि दो वि खलु अण्णे (नि 3946) / 5. जोवो अन्नो देहो त्ति मन्नेज्जा (प्रकी)। 6. व्य 4405, नि 3952 / / 7. 542, 543 ये दोनों गाथाएं व्य में नहीं हैं। 8. 'कुरुत्तर (ला), 'कुरुवुत्त (ब)। 9. तु (व्य ४४०७,नि 3954) / १०.व्य ४४०८,नि 3955 / 11. पुरिसद्देसि' (नि 3957) / 12. राइवि (व्य 4409) / 13. सिया कुज्जा (व्य), सया कुज्जा (नि)। 14. व्य (4410) तथा नि (3958) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है वोसट्ठचत्तदेहो, अहाउयं कोवि पालेज्जा। 15. नवंगसुत्तप्पडिबोहयाए (व्य, नि)। 16. व्य (4411) और नि (3959) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार हैबावत्तरिकलापंडियाए, चोसट्ठिमहिलागुणेहिं च।