________________ पाठ-संपादन-जी-१ 67 531. पडिणीययाएँ कोई, 'अग्गिंसि पदेज्ज असुभपरिणामो 2 / पादोवगते संते, जह चाणक्कस्स वा करिसे / / 532. पडिणीययाएँ कोई, चम्मं से खीलएहिँ विहुणित्ता / मधु-घतमक्खितदेहं, पिवीलियाणं तु दिज्जाहि॥ 533. जह सो चिलातपुत्तो, वोसट्ठ-णिसट्ठ-चत्तदेहो उ। सोणियगंधेण पिवीलियाहि जह चालणि व्व कतो // 534. 'मोगल्लसेलसिहरे, जह सो कालासवेसिओ भगवं"। खइतो . विउव्विऊणं, देवेण सियालरूवेणं // 535. जह से वंसिपदेसी, वोसट्ठ-णिसट्ठ-चत्तदेहो उ। वंसीपत्तेहि विणिग्गतेहि, आगासमुक्खित्तो // 536. जहऽवंतीसुकुमालो, वोसट्ठ-णिसट्ठ-चत्तदेहो उ। धीरो सपेल्लियाए, सिवाय खइतो तिरत्तेणं // 537. जह ते गोट्ठट्ठाणे, वोसट्ठ-णिसट्ठ-चत्तदेहागा। उदगेण वुब्भमाणा२, वियरम्मी१३ संकरे लग्गा // 538. जह सा बत्तीसघडा, वोसट्ठ-णिसट्ठ-चत्तदेहागा५ / .. 'धीरा घाएण'१६ 'उ दीविएण डिलयम्मि१७ ओलइया / 1. पडिणिय (ब)। 9. "मुज्झित्तो (मु), व्य 4424, नि 3971, प्रकी 1229, 2. अग्गिं से सव्वतो पदेज्जाहि (व्य ४४२०,नि 3967) / कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.११ / ३.प्रकी (1228) में इस गाथा की संवादी निम्न गाथा मिलती १०.व्य 4425, नि 3972, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.१२। गोब्बर पाओवगओ, सुबुद्धिणा णिग्घिणेण चाणक्को। 11. 'ढाणा (ला)। दड्डो न य संचलिओ, सा हु धिई चिंतणिज्जा उ॥ 12. वुज्झमाणा (व्य, नि 3973) / कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.८। १३.वियरम्मि उ (व्य 4426) / 4. केई (व्य 4421, प्रकी 1232, नि 3968) / 14. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 13 / ५.निहणित्ता (प्रकी)। 15. देहा उ (व्य 4428) / 6. व्य 4422, तु. नि 3969, कथा के विस्तार हेतु देखें 16. वारण (ब, प्रकी 1230) / परि. 2, कथा सं.९। 17. उदीरिएण विगलम्मि (प्रकी)। 7. जध सो कालायसवेसिओ वि मोग्गल्लसेलसिहरम्मि (व्य 18. नि 3975, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा . 4423, नि 3970) / सं. 14 / 8. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.१०।