________________ जीतकल्प.सभाष्य 522. पुव्वभवियवरेणं, देवो साहरति कोवि पाताले। मा सो चरिमसरीरो', ण वेदणं किंचि पाविहिती // 523. उप्पण्णे उवसग्गे, दिव्वे माणुस्सगे तिरिक्खे य। सव्वे पराजिणित्ता, पायोवगता पविहरंति' / 524. 'देव-णर दुगतिगऽस्सा, केई" पक्खेवगं सिया कुज्जा। वोस?-चत्तदेहो, अहाउगं . कोइ पालेज्जा / / 525. अणुलोमा पडिलोमा', दुगं तु उभयसहिता तिगं होति। अहवा चित्तमचित्तं, दुगं तिगं मीसगसमग्गं // 526. पुढवि-दग-अगणि-मारुय-वणस्सति-तसेसु कोइ साहरति / वोस?-चत्तदेहो, अहाउगं कोइ पालेज्जा // 527. धिति-बलजुत्तेहि तहिं, उवसग्गा जह सढा उ धीरेहिं / णिदरिसणा केइ तहिं, वोच्छामि इमे समासेणं॥ 528. मुणिसुव्वयंतवासी', खंदगमणगार कुंभकारकडे। देवी पुरंदरजसा, डंडगिर२ पालक्क'३ मरुगे य॥ 529. पंचसता जंतेणं, 'रुद्रुण पुरोहितेण मलिया उ। राग-द्दोसतुलग्गं, समकरणं चिंतयंतेहिं५॥ 530. 'जंतेहिं करकएहि व, सत्थेहि 16 व सावएहि विविधेहिं / देहे विद्धसंते, 'ण य ते झाणातो७ फिटुंति'८ // 1. चरम (नि 3944) / 2. हिंति (ला),व्य 4397 / 3. व्य 4398, नि 3945 / 4. दिव्वमणुया उ दुग तिग अस्से (व्य 4402), दिव्व मणुया उ दुगतिगस्स (नि 3949) / 5. 'लोमं (मु, ब)। ६.व्य ४४०३,नि 3950 / 7. कोवि (व्य ४४०४),कोति (नि 3951) / 8. x (पा)। 9. यंतेवासी (ला, मु)। १०.खंदगदाहे य (व्य ४४१७,नि 3964), गपमुहा य (उनि 113) / 11. कडं (ब)। 12. दंडगि (ब)। 13. पालग्ग (पा, ला)। 14. वधिता तु पुरोहिएण रु?ण (उनि 114), “मलिताओ (ला)। १५.व्य 4418, नि 3965 / 16. जंतेण करकतेण व सत्थेण (व्य 4419, नि 3966) / 17. ठाणाहि (नि)। 18. ईसिं पि अकंपणा समणा (प्रकी 1231), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.७।