________________ 24 जीतकल्प सभाष्य दलसुखभाई का मंतव्य प्रस्तुत करना समीचीन होगा-"ऐसी जनश्रुति है कि आचार्य जिनभद्र की पूर्ण आयु 104 वर्ष की थी। उसके अनुसार उनका समय वि. 545 से 650 तक माना जा सकता है, जब तक इसके विरुद्ध प्रमाण न मिले, तब तक हम आचार्य जिनभद्र के इस समय को प्रामाणिक मान सकते हैं। उनके ग्रंथों में उपलब्ध उल्लेखों में भी वि. सं. 650 के बाद के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता है। जिनदास की चूर्णि एवं नंदीचूर्णि में इनका उल्लेख भी इसी मत की पुष्टि करता है। रचनाएं जिनभद्रगणि जैसे महान् श्रुतधर आचार्य की सारी कृतियों का इतिहास सुरक्षित नहीं रहा है लेकिन उनका निम्न कृतियों का कर्तृत्व प्रसिद्ध है१. विशेषावश्यक भाष्य एवं स्वोपज्ञ टीका-जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने आवश्यक के सामायिक सूत्र पर विशेषावश्यक भाष्य तथा उस पर स्वोपज्ञ टीका लिखी। सामायिक आवश्यक एवं उसकी नियुक्ति पर लिखे विशेषावश्यक भाष्य में अनेक मौलिक तथ्यों का निरूपण है। भाष्यकार ने पांच ज्ञानों की खुलकर चर्चा की है। यह ग्रंथ अनेक विषयों का प्रतिनिधि ग्रंथ है। इस ग्रंथ को पढ़कर लगता है कि जिनभद्रगणि के समय से ही जैन आचार्यों का दर्शन और तर्क के युग में प्रवेश हो गया था। भाष्य में नय, निक्षेप, प्रमाण, ज्ञान, कर्म, आत्मा, पुनर्जन्म आदि का विस्तृत वर्णन है। जिनभद्रगणि का मंतव्य है कि इस भाष्य के श्रवण, अध्ययन और मनन से बुद्धि परिमार्जित हो जाती है। छठे गणधर व्यक्त तक ही टीका की रचना कर पाए, इसके बाद वे स्वर्गस्थ हो गए। कोट्याचार्य ने अवशिष्ट टीका को 13700 श्लोक प्रमाण में पूरा किया। 2. बृहत्संग्रहणी-जैन तत्त्वज्ञान एवं जैन भूगोल पर यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है। अन्य संग्रहणी ग्रंथों की अपेक्षा इसमें पद्य परिमाण अधिक हैं अतः इसकी प्रसिद्धि बृहत्संग्रहणी नाम से हो गई। इस पर आचार्य मलयगिरि की महत्त्वपूर्ण टीका भी प्राप्त है। उन्होंने 'जिनवचनैकनिषण्णं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणं' कहकर उनकी प्रशस्ति की है। इसमें 349 गाथाएं हैं। 3. बृहत्क्षेत्रसमास-पांच प्रकरण एवं 656 गाथाओं का यह ग्रंथ जैन भूगोल पर महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने वाला है। इसमें गणितानुयोग की भी चर्चा है। इस पर भी आचार्य मलयगिरि ने महत्त्वपूर्ण टीका लिखी है। इस ग्रंथ पर अन्य आचार्यों ने भी टीकाएं लिखी हैं। जिनभद्रगणि ने इसका नाम समयक्षेत्रसमास अथवा क्षेत्रसमास प्रकरण रखा था लेकिन अन्य क्षेत्र समास कृतियों से बड़ा होने के कारण इसका नाम बृहत्क्षेत्रसमास प्रसिद्ध हो गया। 4. विशेषणवती-यह ग्रंथ 317 गाथाओं में निबद्ध है। इस पर संक्षिप्त टीका प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में १.गण प्रस्तावना पृ.३४।