________________ पाठ-संपादन-जी-१ 475. एवं पादोवगमं, णिप्पडिकम्मं जिणेहिँ पण्णत्तं / जं 'सोऊण परिण्णी", ववसायपरक्कम कुणति // 476. कोईर परीसहेहिं, वाउलिओ वेदणट्टिओ' वावि। ओभासेज्ज कयाई, पढमं बितियं च आसज्ज // 477. गीतत्थमगीतत्थं, सारेउं 'तह विबोहणं'६ काउं। तो पडिबोहय छठे, पढमे पगते सिया बितिए / 478. 'हंदि दु" परीसहचम्, जोहेतव्वा मणेण कारण। तो मरणदेसकाले, कवयब्भूतो तु आहारो॥ 479. णातं संगामदुर्ग, महसिल-रहमुसलवण्णणा तेसिं / असुर-सुरिंदावरणं, चेडग 'एगो गह सरस्स' / 480. महसिलकंटे तहियं, वट्टते कूणिओ तु रहिएणं / रुक्खग्गविलग्गेणं', 'पहतो पट्टम्मि'१२ कणगेणं // 481. उप्फिडितुं सो कणगो, कवयावरणम्मि तोर ततो पडितो। तो तस्स कोणिगेणं", छिण्णं सीसं खुरप्पेणं५ // 482. दिटुंतस्सोवणओ, कवयत्थाणी इहं तहाऽऽहारो। सत्तू परीसहा खलु, आराहण रज्जथाणीया // 483. जह वाऽऽउंटियपादे, पादं काऊण हत्थिणो पुरिसो। आरुभति तह परिण्णी, आहारेणं तु झाणवरं // गाथाओं के स्थान पर नि (3926) में निम्न गाथा मिलती 1. सोऊणं खमओ (व्य 4359, नि 3922, प्रकी 1295) / 2. कोयिं (मु, पा, ब), केई (नि 3923) / 3. णद्दिओ (व्य 4360) / - 4. कयाई (ब)। 5. साहेउं (पा, ब, ला)। 6. मतिविसोहणं (नि 3924), मतिवि (व्य 4361) / ७.हंदी (व्य 4362) / 8. 'यतुल्लो (नि 3925) / 9. व्य (4363) में गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है- संगामदुगं महसिलरधमुसल चेव परूवणा तस्स। 10. एगोग्गह (पा, ला), गाथा 479 से 481 तक की तीन संगाम दुग परूवण वेडग एगसर उग्गहो चेव। असुर-सुरिंदावरणं, संवुभमं रहियकणगस्स / / 11. "ग्गवल' (मु, पा)। 12. पट्टे पहतो उ (व्य 4364) / 13. x (पा, ला)। 14. कूणि° (व्य 4365) / १५.खुरुप्पेणं (पा, ला), कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.५। १६.व्य 4366 / 17. व्य 4367 /