________________ जीतकल्प सभाष्य 466. किं पुण अणगारसहायगेण अण्णोण्णसंगहबलेणं। परलोइए ण सक्का, साहेडं अप्पणो अटुं? // 467. जिणवयणमप्पमेयं, णिउणं' कण्णाहुतिं सुणेताणं / सक्का हु साधुमज्झे, 'संसारमहोदधिं तरितुं" // 468. सव्वे सव्वद्धाए, सव्वण्णू सव्वकम्मभूमीसु। सव्वगुरु सव्वमहिता, सव्वे मेरुम्मि अभिसित्ता // 469. सव्वाहिं वि लद्धीहिं, सव्वे वि परीसहे पराइत्ता। सव्वे वि य तित्थगरा, पायोवगमेण सिद्धिगता // .. 470. अवसेसा अणगारा, तीत-पडुप्पण्ण-ऽणागता सव्वे। केई पादोवगता, पच्चक्खाणिंगिणी केई॥ 471. सव्वाओ अज्जाओ, सव्वे वि य पढमसंघयणवज्जा। सव्वे य देसविरता, पच्चक्खाणेण तु मरंति // . 472. सव्वसुहप्पभवाओ, जीवितसाराओ सव्वजणगाओ। आहाराओ रतणं, ण विज्जते 9 उत्तमं अण्णं 2 // 473. सेलेसि सिद्ध विग्गह, केवलिओघायए य मोत्तूणं। सव्वे सव्वावत्थं, आहारे होंति आयत्ता" // 474. तं तारिसगं रतणं, सारं जं सव्वलोगरयणाणं। सव्वं परिच्चइत्ता, पादोवगता पविहरंति५ // 1. उत्तमो (व्य 4350), उत्तिमो (नि 3913) / 2. मधुरं (व्य 4351), महुरं (नि 3914, प्रकी 1022) / 3. सुणेतेणं (मु, ब, ला)। 4. साहेउं अप्पणो अटुं (प्रकी)। ५.व्य 4352, नि 3915, प्रको 1288 / 6. पादोवगया तु (व्य 4353, नि 3916, प्रकी 1289) / 7. गिणिं (व्य 4354, नि 3917, प्रकी 1290) / 8. सव्वा वि य (प्रकी 1291) / 9. व्य 4355, नि 3918 / 10. जाणिगाओ (पा, ला)। 11. विज्जति हु (व्य 4356) / 12. लोए (नि 3919, प्रकी 1292) / 13. व्य (४३५७),नि (3920) तथा प्रकी (1293) में इस गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है विग्गहगते य सिद्ध य मोत्तु लोगम्मि जत्तिया जीवा। 14. उवउत्ता (व्य, नि)। 15. परिह' (नि 3921), व्य ४३५८,प्रकी 1294 /