________________ पाठ-संपादन-जी-१ 457. कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्म वि जोगे, विसेसतो उत्तिमट्ठम्मि॥ 458. संथारों उत्तिमद्वे, भूमि-सिला-फलगमादि णातव्वो। संथारपट्टमादी, दुगचीरा ऊ बहू वावि // 459. तह वि असंथरमाणे, कुसमादी तिण्णि' अझुसिरतणाइ। तेसऽसति असंथरणे, व 'होज्ज सुसिरा वि तो पच्छा // 460. 'तह वि असंथर कोयव', पावारग णवय तूलि" भूमीए। एमेव अणहियासे, संथारगमादि पल्लंके॥ 461. पडिलेहण संथारं, पाणगउव्वत्तणादि णिग्गमणं / सयमेव करेति सहू, 'असहुस्स करेंति अण्णे उ" || 462. कायोवचितो बलवं, णिक्खमण-पवेसणं च सो कुणति। तह वि य अविसहमाणं, संथारगतं तु संधारे // 463. संथारों 'तस्स मउगो१०, समाधिहेतुं तु होति कातव्वो। तह वि य अविसहमाणे, समाधिहेउं उदाहरणं // 464. धीरपुरिसपण्णत्ते, सप्पुरिसणिसेविते परमरम्मे। धण्णा सिलातलगतार, 'णिरावयक्खा णिवजंति 3 // 465. जदि ताव सावयाकुल, गिरि-कंदर-विसमकडगदुग्गेसु। साधेति उत्तिमटुं, धितिधणियसहायगा धीरा" // 1. व्वे (व्य 4342), व्वा (मु)। 2. गा. 458 के स्थान पर नि (3906-08) में तीन अन्य गाथाएं हैंभूमिं सिलाए फलए, तणाए संथार उत्तिमट्ठम्मि। दोमादि संथरंति, बितियपद अणधियासे य॥ तण-कंबल-पावारे, कोयवतूली य भूमिसंथारे। एमेव अणहियासे, संथारगमादि पल्लंके॥ पडिलेहणसंथारे, पाणगउव्वत्तणादिणिग्गमणं। सयमेव करेति सहू, उस्सग्गाणेतरे करते॥ .३.णिंतु (व्य 4343) / 4. व्व (पा, ब)। 5. झुसिरतणाई ततो (व्य)। 6. कोतवं (पा)। 7. कोयव पावारग नवय तूलि आलिंगिणी य (व्य 4344) / 8. उस्सग्गाणेतरे करते (नि 3908), व्य 4345 / ९.संचारे (व्य ४३४६),संथारे (ब, ला, नि 3910) / 10. मउओ तस्स (व्य 4347), मउतो (पा)। 11. नि में यह गाथा नहीं है। 12. 'तलतले (मु, ब, ला)। 13. साहिंती अप्पणो अटुं (प्रकी 1023), व्य 4348, नि 3911 / 14. व्य 4349, नि 3912, तु. प्रकी 1020 /