________________ 58 जीतकल्प सभाष्य 448. विगतीकताणुबंधे, आहारऽणुबंधणाएँ वोच्छेदो। परिहायमाणदव्वे, गुणवुड्डि' समाधि अणुकंपा // 449. 'दवियपरीमाणं ता", हाति दिणे दिणे तु जा तिण्णि। बिंति ण लभंति' दुलभे, सुलभम्मि वि होतिमा जतणा॥ 450. आहारे ताव छिंदाहि', गेधिं तो णं चइस्ससि / जं 'भुत्तं ण हु" पुव्वं ते, तीरं पत्तो तमिच्छसि॥ 451. वटुंति अपरितंता, दिया व रातो व सव्वपरिकम्म। . पडियरगा मुणिवरगा, कम्मरयं णिज्जरेमाणा॥ 452. जो जत्थ होति कुसलो, सो तु ण हावेति तं सति बलम्मि। उज्जुत्ता सनिजोगे१२, तस्स वि दीवेंति तं सहूं / 453. देहविओगो खिप्पं, व" होज्ज अहवा वि कालकरणेण५। दोण्हं पि निज्जरा वद्धमाणो१६ गच्छो उ एतट्ठा / 454. कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। 'अण्णयरम्मि वि. जोगे, सज्झायम्मी विसेसेणं॥ 455. कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मि वि जोगे, काउस्सग्गे विसेसेणं // 456. कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मि वि जोगे, वेयावच्चे विसेसेणं // १.वोच्छेदे (ब)। 2. वड्डि (मु)। ३.नि 3896, व्य 4332 / 4. दव्वियपरीमाणं (ला, ब), विगयपरिमाणंता (पा), परिणामतो वा (व्य 4333, नि 3897) / 5. लब्भति (व्य,नि)। ६.च्छिंदाहि (पा), छिंदाही (व्य 4334) / 7. स्सति (पा, ला)। 8. वा भुत्तं न (व्य, नि 3898) / 9. परितंतो (ला), पडिकम्मं (व्य 4335) / 10. गुणरयणा (व्य)। 11. नि 3899 / 12. सति जोगे (मु)। 13. सद्धं (व्य 4336, ला),नि 3900 / 14. व्व (ब)। 15. कालहरणेणं (व्य 4337, नि)। 16. वट्टमाणो (मु, पा), वट्टमाणे (नि 3901) / 17. अन्नतरगम्मि (व्य) सर्वत्र। 18.454 से 457 तक की चार गाथाओं के लिए देखें व्य 4338-41, नि 3902-5 /