________________ पाठ-संपादन-जी-१ 57 439. णवविगति-सत्तओदण, अट्ठारस वंजणुच्चपाणं च। अणुपुब्विविहारीणं', समाधिकामाण उवहरई // 440. काल-सभावाणुमतो, पुव्वझुसितो 'सुतो व दिवो वा। झोसिज्जति सो वि तहा, जतणाय चउव्विहाहारों // 441. तण्हाछेदम्मि कते, ण तस्स तहियं पवत्तते भावो। अहव कहिंचुप्पज्जति, तह वि णियत्तेइ एवं तु // 442. 'किं च तं णोवभुत्तं'६ मे, परिणामासुयिं सुयिं? / दिट्ठसारो सुहं झाति, चोदणे सेव सीदते // * 443. चरिमं च एस. भुंजति, सद्धाजणणं च होति उभए वि। संजय-गिहियाणं वा, तो देंति इमीय तु विहीय // 444. तिविधं तु 'वोसिरिहीइ, सो ता" उक्कोसगाइँ दव्वाई। मग्गेत्ता जतणाए, चरिमाहारं पदंसेंति // 445. पासित्तु ताणि कोई, तीरप्पत्तस्स किं ममेतेहिं?। - वेरग्गमणुप्पत्तो, संवेगपरायणो होति // 446. सव्वं भोच्चा कोई, 'धिद्धीकारं इमेण२ किं मे? त्ति३ / वेरग्गमणुप्पत्तो, संवेगपरायणो होति // ... 447. सव्वं भोच्चा कोई, मणुण्णरसपरिणतो" हवेज्जाहि५ / तं 'चेवऽणुबंधतो '16, देसं सव्वं च गेहीया॥ 1. 'हारीण (ला)। 9. सिरेहिति ताहे (व्य 4329) / 2. हरिउं (व्य 4325), तु.नि 3887 / १०.नि 3891 / 3. सुओवइट्ठो (मु)। ११.व्य ४३३०,नि 3892 / 4. व्य 4326, नि 3888 / 12. इमेणं (पा)। ५.व्य (4327) तथा नि (3889) में गाथा का उत्तरार्ध इस 13. धिक्कार करइ इमेहि कम्मेहिं (नि 3894) / प्रकार है 14. 'सविपरि (नि)। - चरमं च एस भुंजति, सद्धाजणणं दुपक्खे वि। 15. भवे (व्य 4331, नि)। 6. किं पत्तो णो भुत्तं (नि 3890) / 16. णुवच्चंतो (ला, ब)। 7. सीययो (मु, ब), व्य 4328 // 17. रोचीया (नि 3895), रोहीया (ब)। '8. गाथाओं के क्रम में व्य में यह गाथा नहीं है।