________________ 56 जीतकल्प सभाष्य 429. इंदियपडिसंचारो, मणसंखोभकरणं जहिं णत्थि / चाउस्सालाई दुवे, अणुण्णवेऊण ठायंति // पाणगजोग्गाहारे, ठवेंति से तत्थ जत्थ ण उवेंति / अप्परिणता व सो वा, अप्पच्चय-गहिरक्खट्ठा / भुत्तभोगी पुरा जो तु', गीतत्थो वि य भावितो। 'संतेसाऽऽहारधम्मेसु', सो वि खिप्पं तु खुब्भती॥ पडिलोमाणुलोमा वा, विसया जत्थ दूरतो। ठावेत्ता तत्थ से णिच्चं, कहणा जाणगस्स वि॥ पासत्थोसण्णकुसीलठाणपरिवज्जिता तु णिज्जवगा। पियधम्मऽवज्जभीरू, गुणसंपण्णा अपरितंता // जो जारिसगो कालो, भरहेरवतेसु होति वासेसु। ते तारिसगा तइया, अडयालीसा तु णिज्जवगा // 435. 'उव्वत्त दार"२ संथार, कहग वादी य अग्गदारम्मि। भत्ते पाण वियारे, कहग दिसा जे समत्था य॥ 436. दुवालसेसु एतेसु, एक्केक्के चउरो भवे। दिसि चउसुं" एक्केक्के, अडयालीसं भवंती तु॥ 437. एवं खलु उक्कोसा, परिहायंता हवंति 'दो' च्चेव'५ / दो 'गीत किं णिमित्तं?'१६, असुण्णकरणं जहण्णेणं // 438. तस्स य चरिमाहारो, इट्ठो दातव्व तण्हछेदट्ठा। सव्वस्स चरिमकाले, अतीवतण्हा समुज्जलइ // 1. करं (नि 3878) / 2. लादि (व्य 4316) / ३.व्य और नि में इस गाथा में क्रम-व्यत्यय है। ४.गिद्धिर (नि ३८८०),व्य 4317 / ५.वि (नि 3881) / ६.संतेमा (व्य 4318) / 7. लोम अणु (मु, ब)। 8. ते (नि 3882), व्य 4319 / ९.व्य 4320, नि 3883 / 10. 'वते य (नि 3885) / 11. व्य 4322 / 12. 'त्तणाइ (नि 3884) / 13. व्य 4321 // १४.मु एवं हस्तप्रतियों में चउसु के बाद 'पुव्वे' पाठ अतिरिक्त 15. तिण्णेव (व्य 4323, नि 3886) / 16. गीयत्था ततिए (व्य)। 17. समुप्पज्जे (व्य 4324) /