________________ पाठ-संपादन-जी-१ 420. अहवा तिगसालंबेण, दव्वमादी चउक्कमाहच्च'। आसेवितं णिरालंबओ व आलोयए तं तु // 421. पडिसेवणातियारा, जदि वीसरिता कहिंचि होज्जाहि। तेसु कह' वट्टितव्वं, सल्लुद्धरणम्मि समणेणं? // 422. जे मे जाणंति जिणा, अवराहे जेसु जेसु ठाणेसु। ते हं आलोएउं, उवट्ठितो सव्वभावेणं // 423. एवं आलोएंतो', विसुद्धभावपरिणामसंजुत्तो। आराहओ तह वि सो, गारवपलिकुंचणारहितो // .424. ठाणं पुण केरिसगं, होति पसत्थं तु तस्स जं जोग्गं?। भण्णति जत्थ ण होज्जा, झाणस्स उ तस्स वाघातो // 425. गंधव्य-नट्ट-जड्डुऽस्स-चक्क-जंत-ऽग्गिकम्म-फरुसे य। . तिक्क-रयग-देवड", डोंबिल-पाडहिय-रायपहे२ // 426. चारग-कोट्टग-कल्लाल, 'करकए पुप्फ-दगसमीवे य१३ / 'आराम अहेवियडे "", णागघरे'५ पुव्वभणिते 6 य॥ 427. पढम-बितिएसु कप्पे, उद्देसेसू उवस्सगा जे तु। विहिसुत्ते य णिसिद्धा, तव्विवरीते गवेसेज्जा // 428. उज्जाणरुक्खमूले", सुण्णघर ऽणिसट्टा हरितमग्गे य। एवंविधे ण ठायति', होज्ज समाधीय वाघातो // 1. 'च्चा (पा)। 2. व्य 4307, नि 3871 / 3. जा (पा, ला),जह (व्य 4308) / 4. कहं वि (नि 3872) / 5. कहं (पा)। 6. व्य ४३०९,नि 3873, प्रकी 869 / 7. 'एंति (नि 3874) / 8. व्य 4310 / 9. व्य 4311 / 10. पुरुसे (मु, व्य 4312) / 11. देवट्ट (पा)। '१२.नि 3875 / 13. करकय-पुप्फ-फल-दगसमीवम्मि (व्य 4313), करयपुप्फ-फलदगसमीवम्मि (नि 3876) / 14. आरामे अहवियडे (व्य)। 15. घडे (ला, पा)। 16. पूर्वभणित का तात्पर्य है कि यह वर्णन व्यवहार भाष्य (4312,4313) में वर्णित है। 17. भवे सिज्जा (मु, ला),व्य ४३१४,नि 3877 / 18. “णे तरुमूले (मु)। 19. अणिसट्ठ (मु)। 20. वायइ (पा)। 21. व्य ४३१५,नि 3879 /